अन्तगडदसाओ | Antagad-dasao

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Antagad-dasao by आचार्य श्री नामेश - Acharya Shri Nameshमुनि ज्ञान - Muni Gyan

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आचार्य श्री नानेश - Acharya Shri Nanesh

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मुनि ज्ञान - Muni Gyan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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इस प्रकार इन साथक चार शब्दो का एकीक रण कर प्रस्तुत सूत्र का नामकरण 'ग्रन्तक्- हशाग सूत्र” किया गया है । प्रस्तुत सूत्र मे वसित प्राय सभी महापुरुष, केजलालोकित श्र्थ को आयुध्य की भ्रल्पता के कारण गअभिव्यक्त नही कर पाने से भी उन्हे “ग्रन्तक्ृत केवली' कहा गया है 1 सूत्र परिचय- प्रस्तुत सूत्र के परिचय वे सन्दभ में अनक दृष्टिकोण पटने को मिलते है । 'समवायागसूत्र' मे इस सूत्र के दस अध्ययन और सात वग कहे गये है । आचाय देववाचक न नन्‍्दीसूत्र मे श्राठ वग का प्रतिपादन किया है किन्तु दस ब्रध्ययतो का नहीं ।१ आचाय प्रमयदेव मे समवायाग वृत्ति में दोनो ही सूत्रो का सामजस्य करते हुए लिखा है कि--प्रस्तुत सूत्र के प्रथम वग मे दस अध्ययन हाने से समवायांग सूत्र में दस अध्ययन तथा अ्रवशेप सात वर्गों का पृथक रूप से सात वर्ग के रूप मे परिगणित किये हैं । नदी सूत्र मे प्रथम वग कै श्रध्ययन न वतलाकर प्रथम वग झोर सात वर्गों को मिलाकर झाठ वगे परिगरित कर लिये हैं ।? किन्तु इस सामजस्य का अन्त तक निवहन सभावित नहीं लगता। क्योकि समवायागमे ही प्रस्तुत यूत्र के शिक्षा काल (उद्देशन वाल) दस बतलाए गये है। जबकि नन्‍दी सून में श्राठ ही प्रतिपादित है । इसोलिये भ्राचाय अभयदेव ने यह स्वीकार किया है कि उद्देशनक्रालो के झन्तर का अभिप्राय ज्ञात नही है ।$ श्रघ्ययना के नामो के भौ पाठ भेद मिलते है । प्रस्तुत आगम में एक श्रुतस्कन्घ, श्राठ वंग, ६० श्रष्ययन, श्राठ उदेशन काल, समुदेशन काल झौर परिमित वाचनाएं हैं ! इसमे अनुयोगद्वार, वेदा, श्लोक, नियु क्तियाँ, सम्रहरियाँ एवं प्रतिपत्तिया सख्यात-सस्यात है। पद सख्यात भर अक्षर सस्यात हजार बताये गए हैं । वतमान मे प्रस्तुत सूत्र ६०० श्लोक परिमाण वतलाया गया है । “ भरष्ट वर्गो मेसेप्रथम-द्वितीय वग मे दस-दसश्रध्ययन, तृतीय वग मे तेरह श्र्ययन, + दशत प्रज्फयलातत वगा । --षम्वायाग प्रकीसेक समवाय सूत्र-96 2 अझंदृठ बग्गा । --नेदी सूत्र --88 3 दम अज्मयएत्ति प्रथमवर्गा पेसयेवधटन्ते, न-या तथैव व्या्यातत्रातु यज्वेहं प्रयते “सत्त वग्न' लि तद्‌ भ्रयम वर्गादिय वगपिषयायताध्यष्टवर्या नन्यामपि त्तया पठितत्वात्‌ ।-समवायाग वृति पत्र--112 तता भरित प्रटठ उदु शन काला इत्यादि, इह च दश उशन कला भ्रधीय ते इति नास्यमभिप्रायम वगच्दाम ।-समवायाग वति प्रत्र-112




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