गुरुकुल - पत्रिका | Gurukul Patrika
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
112
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सहसा मेरी निगाह २ दिसम्बर के दैनिक हिन्दुस्तान में प्रकाशित उस समाचार पर चली गई
जिसमें मारीशस में हो रहे विश्व हिन्दी सम्मेलन में भाग लेने के लिए जाते समय हवाई अड्डे
पर उनके प्राण पखेरु उड़ जाने की सूचना छपी थी। मुझे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं
हुआ। मैंने वह समाचार दो-तीन बार पढ़ा। फिर मेरा सिर चकराने लगा। मैं वहाँ रखी
कुर्सी पर बैठ गया। स्वागत कक्ष में बैठा सुरक्षा कर्मचारी मेरी हालत देखकर घबरा गया।
उसने मेरा कंधा झकझोरते हुए पूछा- क्या बात है ? घर पर सब ठीक है न ? फिर पानी
का गिलास सामने रख दिया। मेरे मुँह से एक भी शब्द न निकला। भारी मन से उठा,
टैक्सी ली और अपने घर वापिस आ गया। इसके बाद भी कितने ही दिनों तक मैं अपने मन
को व्यवस्थित न कर सका। मेरे मानस-पटल पर अतीत के अनेक घटना-प्रसंग अलगनी पर
टगे मनोरम रगीन वस्त्रों जैसे दिखते रहे ।
पत्नी ने अपने पिछले ही पत्र में लिखा था कि भाई प्रशांत जी ने पत्र लिख कर न
केवल कुशलक्षेम पूछी है अपितु यह भी लिखा है कि किसी भी प्रकार की सहायता की
अपेक्षा हो तो उन्हें निःसंकोच लिखूँ या फोन करूँ। मेरे कहे या लिखे बिना प्रशांत जी का
पत्नी को यह पत्र लिखना मेरे प्रति उनकी प्रगाढ़ प्रीति का ही सूचक नहीं था अपितु अपने
आत्मीयों के प्रति उनके सहज प्रेम की निश्छल अभिव्यक्ति भी रेखांकित करता था। मैंने
उन्हें सदैव दूसरों के लिए इसी प्रकार चिंतित और उनकी समस्याओं के निदान के तिए
प्रयत्नशील होते देखा था।
कोई व्यक्ति किसी के साथ कितनी आत्मीयता रखता है इसकी परख उस समय होती
है जब उसे दो स्थितियों मे से किसी एक का चयन करना पड़ता है। प्रशांत जी का कार्यक्षेत्र
बड़ा विस्तृत था । उनकी नानाविध सामाजिक-राजनीतिक प्रतिबद्धताएं थी । अतएव उनके
जीवन मे एेसे निर्णय तेने के अवसर प्रायः आते रहते थे । लेकिन उनके मन मे इस
संबंध में किसी प्रकार की दुविधा नहीं थी। अपने आत्मीयजनों के कार्यक्रमों में सम्मिलित
होने को उन्होंने सदैव प्राथमिकता दी। मुझे स्मरण है कि मेरे चीन-प्रवास से पूर्व भाई
जयप्रकाश भारती ने २८ सितंबर, सन् १९९२ ई० की शाम को जिस मिलन-गोष्टठी का
आयोजन किया था उसी दिन ओर उसी समय ईो० गौरी शंकर राजहंस के लाओस में
राजदूत नियुक्त किए जाने के उपलक्ष्य मँ एक अभिनन्दन समारोह आयोजित था । भाई
प्रशांत कुमार को उसमे भी सम्मिलित होना था । लेकिन उन्होंने मिलन-गोष्ठी में शामिल
होने को प्राथमिकता दी। उस समारोह में वे बाद मे ही गए | उनके इस प्रकार के आत्मीय
व्यवहार के कारण ही उनके पास कथे से कधा मिला कर काम करने वाले मित्रों की एक
अच्छी खासी मंडली थी।
प्रशांत जी कर्मठ एवम् प्रबुद्ध सामाजिक राजनीतिक कार्यकर्ता होने के साथ साथ
साहित्य स्रष्टा भी थे । सच तो यह है कि साहित्यिक कार्यक्रमों मे शामिल होने पर उन्हें
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