शिकारी के शब्द चित्र | Shikari Ke Shabda Chitra

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Book Image : शिकारी के शब्द चित्र  - Shikari Ke Shabda Chitra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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च, “भला, किस लिए खरीद्‌ं मैं अपनी आज़ादी ? अब मैं अपने मालिक को भी जानता हूं, और अपना लगान भी मुझे मालूम है... बहुत भला मालिक मिला है हमें। “ग्राज़ाद होना हमेशा अच्छा होता है, मैंने अपना मत प्रकट किया । संदिग्ध नज़र से खोर ने मेरी ओर देखा। “सो तो है ही, वह बोला। “तो? फिर क्‍यों नहीं तुम अपनी आज़ादी खरीद लेते? ” खोर ने सिर हिलाया। “लेकिन, श्रीमान, आज़ादी खरीदने के लिए मेरे पल्‍ले है क्या? “अरे रहने दो, बुढ़क! ज़्यादा बनो नहीं। “श्रगर खोर को श्राज्ञाद लोगों के बीच फेंक दिया जाय, ” दबे स्वर मं, जैसे श्रपने-श्राप से ही, वह कहता गया, “तो हर ग्रनदाद्िया खोर को मात करने लगे।” “तो तुम भी दाढ़ी मुंडवा डालो! ” “दाढ़ी आख़िर है क्या? निरी घास! जब चाहो काठ डालो। “तो फिर? “लेकिन खोर सीधा सौदागर बनेगा, भ्रौर सौदागर लोग बड़े मज़े की ज़िन्दगी बिताते हैं, और उनके दादी भी होती ই? “ तो क्‍या थोड़ा-बहुत व्यापार भी तुम करते हो ?” मैंने उससे पूछा। “ बस थोड़े मक्खन और थोडे तारकोल का व्यापार... आपके लिए गाड़ी जोतवा दूं न?“ “तुम बड़े चालाक आदमी हो। अपनी ज़बान पर लगाम कसे रहते हो,” मेंने मन ही मन कहा। फिर प्रकट रूप में बोला, “नहीं। गाडी नहीं चाहिए) कल तुम्हारे घर के पास ही शिकांर खेलूंगा। और श्रगर तुम इजाजत दो तो रात मै तुम्हारे पुप्राल-घरमं दही सो रहूं।“ १८




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