शाश्वत सौन्दर्य के शिल्प तीर्थ | Shashwat Saundrya Ke Shilp Tirth

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Shashwat Saundrya Ke Shilp Tirth by सावित्री परमार - Savitri Parmar

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about सावित्री परमार - Savitri Parmar

Add Infomation AboutSavitri Parmar

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
शिल्प तीथ राखकपुर 17 तयार कराने की प्रतिशञा की । दूर दूर से शिल्पकारो को प्रामात्रत किया गया। नक्शे तयार कराय, लेक्नि स'तुष्टि नही हो पा रहा थी । तब झाया उत्त समय का बहुत प्रसिद्ध शित्पकार देयाक जिसवी चारा भ्रोर प्रशक्ता थी । देया जाति का ब्राह्मण था। उससे जब प्राग्रह हुमा, तव उस शिल्प विन मे अपूब रेखाचित्र बताकर दिया “अलोक्य-दीपक” नामक मदर का हू ब हू स्वप्त चित्र घरणीशाह प्रसन्न हा उठा 1 अनेक सहायक शिल्पकार देवर इस दिवा स्वप्न को सम्पूरा बला प्रावेगो के साथ प्रस्तर पर साकार करने के लिए उससे फिर সায় त्रिया । बडी श्रद्धा भक्ति श्र लगन कै साथ रणा विहार नामक चतुम्ु ख श्रादिनाथ जिनालय की লীন ভারী गर्मी भ्रौर देयाक ने भी पत्थरों म कला का बेजोड नमूना उकेर कर उस वर्णना तीत स्वप्न को साकार कर्ने का वचन दिया। घरणीशाह ने सवश्रेष्ठ सममरमर प्राप्त करने के लिए मकराना भौर मेवाडी को चुना। इन स्थानासे हलकी मै सफेद रग का संगमरमर मगवाया गया । मेवाडी प्रस्तरों वर उसमें प्रपती कला का समस्त सौदय रच डाला | पपने श्रेष्ठ सहायक शिह्पियो के साध, जिकी सन्या पचास साठ के करीब थी, वह रातभ्रौर दिन इस निर्माण काल में एकनिष्ठ साधनारत होकर जुटा रहा। यह माँ दर पाली जिले में प्रामे जाकर मेवाड की सीमा से लगा हुप्ना है जा फालना से बारह मील शोर सादडी से छह मौल के लगभग दूर पड़ता है। चारा पार से काले भूरे गिरिश्य गो की भतुरागी वाहा ने इसे लपेट रखा है। इससे थाडी दर कल कल बहती है एव गोरवर्णा नदी फिर है भ्रसीम हरियाली का बिखरा महता सौ दय इन समी बिवित प्रतिबिबित वीधियो के बीच सूय को भ्राभा मं सामने भिलमिला रहा है स्वेत राजहस सा रणकपुर । सुनते हैं कि जब इस मादर का निर्माण हो रहा था, तब घरणीशाह वी इच्छा थी कि कला को सर्वोच्च सोष्ठवता के साथ यह माँ दर सांत मंजिल का बने, लैकिन कुछ ऐसे कारण वन गये फि इसका निर्माण काय केवल चार मिला तक ही घला, फिर निर्माणकाल समाप्त करा दिया गया, लक्तिन श्राजभी, मँ देस रहौ है कि इसकी साज सवार पर बड़ी सतक दृष्टि रसी जाती है । बारह महीने लगातार बदन कोई काम चलता हौ रहता है । मैं इसक क्षेत्रफल के सम्ब घ में भी जानकारी प्राप्त करती हू । यह माँ दर भवुमागत श्रद्ालांस हजार वग फुट के घेरे मे बना हुम्ना है। मेवाडी श्रीर मकराना ही बहुमुल्य संगमरमर घुडीदार बेला के गुच्छे भूतिया भौर व दनवारों से सज्जित डर चौबीस रगमण्डप एक सौ चौरासी भू गृह पिच्वासी शिखर झ्रौर एक हजार चार सौ चौवालीप स्तम्भ हैं. चारो दिशा मे प्रवेश हदु बहुत ही कामदार वरा हार है जहा पच्चीस कूरेदार चौको रे माव स्यो दरा माँ दर मे प्रवेश किया जाता है । हाथम माला सिर पर परगडी ्रौर गले मे उत्तरीय पहने




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now