अमृता | Amrita
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
356
श्रेणी :
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रघुवीर चौधरी - Raghuveer Chaudhary
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)समग्र इस तरह बेंट जाये यह उचित नही 1 हम अपमे अस्तित्व के प्रत्ति निछावान्
रहें यह भावश्यक है ।”” हि ¢ 4. >
“मेरा रूक्ष्य भी निष्ठा हो हैं। केवल अपने प्रति नही, समप्रके प्रति
बल्कि समग्र का ध्यान रहे तो स्वयं का उसमें समावेश हो जाता है ।””
- “मैंने भी यह सब पढा-सुना है । मुझे उससे कुछ ठेना-देना नही ह । तु षय
करता है आजकल ?”
“पढ़ता है ।” ` र 9 ह य्
“वह तो करता ही है, दूसरा कुछ ?” है १
“अभी णो मैं पढ़ता हूँ, वह अपना' लिखा हुआ । लिखता हूँ भौः
पढ़ता हूँ ।
“क्या, निबन्ध लिखा 7”
“ना, कहानी ।'”
“निवरन्ध-नैषी होगी ?' ष
कविता-जै्ी भी हो सकती हैं | तू कल मेरे यहाँ आना, तुझे सुनाङेगा ।
“कल तो मैं एक नृत्य देखने जानेवाला हूँ ॥ एक अमरीकन नृत्य मण्डल
मापी ह। एम्मडं नृत्य के प्रयोग करती है ।””
“तो आज ही चछ । हार्लॉकि यह तो इसपर निर्भर करवा ह कि यहा,
कब जा सकेंगे ।”?
+'तुसे यहाँ से जाने की इच्छा होती है ?”
“तुझे पहले तो यह पुछना चाहिए कि यहाँ आने की इच्छा होती है १
“ग्रह तो बिना पूछे भी समझ सकता हूँ ।”
अमृता आयो । उदयन ने अपने पैर हटा लिये | अनिकेत खड़ा हुआ।
“क्यों खड़े हो गये ?”” धर
“घूमने जाने की इच्छा जगी । इस जुहू के किनारे घूमना मुझे अच्छा रूगत
किन्तु ऐसे अवतर बहुत कम मिलते ह 1' १
“अब अधिक मिलेगे। मैं तेरे साथ आऊँगा ।!” *
'कौन किसके साथ आता हैं, इससे कौन किस लिए आता हँ---अधिव
महत्त्व का है । तो, तू बठ ! मैं ज़रा घूम आऊँ ।”
अमृता अप्तमंजस में पड गयी | उदयन वैठा है, उप्ते बैठने के छिए तो अनिकेत्
ने कहा भी है । भव उत्ते यही छोडकर अनिकेत के साथ जाना अजोव-सा छगेगा |
पायद, यही मानकर उदयन बैठा रहा होगा कि मैं न जाऊँ। 1
अनिकेत सीढी उतर, मकान पार कर॒ दरवाजे तक पवता दिलाई दिया,
तब तक तो वह एक कदम चमी चुकी थौ । उदयन ने यह देखा 1 अमृता
है
भगवा ५
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