नाटककार अश्क | Natakkar Ashk

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Natakkar Ashk by विभिन्न लेखक - Various Authors

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कौशल्या अश्क - Kaushalya Ashk

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जगदीश चन्द्र - Jagdish Chandra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नाटककार त्रके भ्रनुकरण नहीं किया । उनका परिचय बंगला-नाटकों और अगर जी साहित्य से भी हो गया था, इसलिए संस्कृत की प्राचीन नाथ्य-शैली में अनेक नवीन परिवर्तनों के साथ उन्होंने हिन्दी नाटकों की रचना की | भारतेन्दु ने नाटक? शीर्षक निबन्ध मे लिखा है : (ध्रव नारक मे कही श्राशीःः प्रति नास्यालंकार, कहीं अकरी”, कहीं বিলীন” कहीं संफेटः पचसि वा ऐसे ही अन्य विषयों की कोई आवश्यकता नहीं रही | संत्कृत नागक की भाँति हिंदी नाटक में इनका अनुसंधान करने, वा किसी नाटकाँग में इनको यत्नपूवंक रख कर हिंदी नारक लिखना व्यर्थ है, क्योंकि प्राचीन लक्ष रख कर आधुनिक नाटकादि की शोमा संपादन करने से उल्टा फल होता है और यल व्यर्थ हो जाता है। संस्कृत नाटकादि रचना के निमित्त महामुनि भरत जो सब नियम लिख गये ह उनने जो हिदी-नारक-स्वना के नितांत उपयोगी है श्रौर इस काल के सहृदय सामाजिक लोगों की रुचि के अनुयाई हैं, वे ही नियम यहाँ प्रकाशित होते हैं ।” इस बात से स्पष्ट है कि भारतेन्दु निपट प्राचीनपन्‍्थी नहीं थे और न नवीनता के ही अन्ध भक्त | उनके ससत्य हरिश्चन्द्रः, च्चन््रावलीः, वैदिकी हिंसा हिसा न भवतिः, भविस्य विषमौप्रधम्‌ः, मारतजननीः श्रादि नायको में संस्कृत नाठकों की तरह भरत-वाक्य, प्रस्तावना, नांदी-पाठ मौजुद हैं। चन्द्रावली? में विष्कृम्भक ओर अंकावतार भो हैं| भारतेन्दु ने नाठकों में स्वगतः का प्रयोग बहुत किया है। सत्य हरिश्वन्द्रः में महाराज हरिश्चच्ध ने काशी नगरी और गंगा के वर्शन में तीन पृष्ठ का और श्मशाम में छै प्रष्ठ का स्वगत-भाषण




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