सूरसागर खंड १ | Sursagar Khand-i
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13.64 MB
कुल पष्ठ :
870
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्य प्रथम रकंघ
जे लन सरन भजे चनयारी ।
से ते राखि लिए जग-जोवन, जहेँ जहेँ विपति परी तहेँ टारी !
संकट तैँ प्रह्नाद उधघारयो, हिरनाकसिप-उद्र नख फारी ।
छंब्र हरत ट्ुपद-तनया की दु््सभा मधि लाज सम्हारी ।
राख्यी गोछुल बहुत विघन ते; कर-नस पर गोवधन धारी |
सूरदास प्रभु सब सुस-सागर दीनानाथ, मुकुंद, सुरारी ॥र९॥
पास्थ के सारथि दरि झाप भए हें।
भक्तबदधल नाम निगम गाइई गए हैं।
बाएँ कर. बाजि-बाय. दादिन हैं. बैठे ।
हॉकत हरि. हॉक देत गरज्त ज्यों एँठे ।
छाती लॉ छोॉह किए सोमित हरिःछाती ।
लागन नहिं देत कहूँ समर-झॉच ताती |
करन-मेघ . वान-बूँद भादी-करि . लायी ।
जित जित मन 'अजुन की तित्दि रथ चलायो 1
कौरो-दुल नासि नासि कोन्दों जन-भायी 1
सरन गए राखि लेव सूर सुजस गायों ॥९३॥
राग परज
स्याम-भजन-विन्ु कौन चड़ाई ?
बल, विद्या; घन, धाम, रूप, गुन ीर सकल मिथ्या सँजाई।
'छंबरीप, प्रदलाद, नपति बलि, मद्दा ऊँच पदवी तिन पाई ।
गदि सारेंग, रन रावन जोस्यी, लक विभीपन फिरी दुद्दाई।
मानी द्वार बिमुस दुरजोधन, जाके जोधा हे सी भाई।
पांडव पाँच भजे. प्रभुनचरननि, रनहिं जिताए है जदुराई।
राज-रवनि सुमिरे . पति-रारन सुख्चंदि ते दिए छुड़ाई।
अति झानंद सूर तिहिं श्ौसर,; कीरति निगम कोटि सुख गाई ॥२४॥।
का राग विहागरो
कहां गुन वरनो स्याम, तिहदारे ।
झुषिजा; बिदुर; दीन द्विज, गनिक्ा, सबके कान सेँवारे ।
जज्ञभाय _ नि. लियी देत सौँ रिपिपति पतित विचारे ।
मिल्निनि के फल साए भाव सौ. सारे-मीठे-खारे ।
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