कुरानानुवाद | Kurananuwad

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Kurananuwad by सत्यदेव - Satyadev

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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म ॥१॥ पारः ॥१॥ सुरते वक्र ॥२॥ खकु ॥१२॥ आयत ॥६५॥ १३ बछूड़ा बना लिया आर तुम अत्याचारं दा ॥ ८८ ॥ र जव हमने तुम से प्रण कराया आर बरुम्हार उपर तुर पवेत का डत्थान [किया कि बरू स॒ अहसा करो जो तुम को हम ने द्याह । आर सुना । व बोजे । हम नें श्रवश्‌ किया । ओर न माना | कुफर के कारण उनके मनों में तो वत्स व्यापक हो रहा था । तू कह । यदि तुम विश्वासी हो तो तुम्हारा विश्वास तुम्हें बुर बात घिखा रहा हे॥<८६॥ तू कह यदि इतर पुरुषों के अतिरिक्त तुम को केवल ईदवर का गृद्ध मिलता है | तो तुम स्वमस्तत्यु की इच्छा करो यदि तुम सच्चे हो ॥६&० ॥ और वे झत्यु को इच्छा कदापि न करेंगे । इस कारण से जो उन के हाय पहले मेज चुके हैं ( अपने पूव छल्यों के कारण से ) और হইল अन्यायकारियों को जानता है |: ६९ ॥ और तू उन्हें इतर सब पुरुषों की अपेक्षा सांसा- रिक जीवन पर सब से आझधिक लोलुप पाएगा ओर पाषाशापूजकों में से भी प्रत्येक सहस्रायु का अभि- लाषी है । ओर यह दीघे जीवन कुछ उस को कष्ट से रक्षित न करेगा | ओर जो कुछ वे करते हे इंश्चर देखता हे !। ६२ ॥ वेप ० १शशम-तू कह । जो कोई जवरइंल <का शज्लु हैं । सो उस ने ईंशवणज्ञानुरोध से तेरे मन में निवेश किया है ॥ জী उस ( वाक्यावखी ) को जो उस्कं समच हे सत्य स्वीकार करता | और शिक्षा और विश्वासियों लिये शुभ सूचना है ॥ ६३॥ जो कोई इंश्वर का ओर उसके दूतों ( फरिश्तों ) का आर उसके रखूला आर मिकाईल का আহি होगा तो इंश्वर उनका शत्रु हांगा ॥ ६४ ॥ हम ने तेरी ओर खुली आयत ( चिन्ह ) उतारी हैं| सत्यवाहिमूत मनुष्यों के आतारक्त उस कोई अनड्रीकार न करेगा ॥ ६५॥ क्या जघ वे इश्वर से कोई प्रण करेंगे तो एक सघूह उनम उस रतज्ञा का




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