बाबू श्यामसुंदर दास के निबंधों का संग्रह | Babu Shyamsundar Das Ke Nibandho Ka Sangrah
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
81 MB
कुल पष्ठ :
508
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)4 | [ নানু श्यामसुन्दर दास के निबन्धो का संह
पर उनका आगमन होता था और आशीर्वाद के बाद एक रुपया दक्षिणा में दिया
जाता था।
इसी प्रकार विन्ध्यवासिनी देवी (विन्ध्याचल) का पण्डा भी वर्ष में कम-से-
कम एक बार आता था और आदर-सत्कार के बाद यथोचित दक्षिणा का अधि-
कारी होता था ।
पंजाब-अमृतसर में इनके पूर्वजों का पुरोहित रहता था। वर्ष में एक
बार वह भी अपने यजमानों को आशीर्वाद देने आया करता था। सार्ग-व्यय
(रेल किराया), वस्त्र तथा दक्षिणा को वह भी प्राप्त करता था।
पारिवारिक जीवन
बाबू जी का विवाह बाल्यावस्था में ही हो गया था । क्रम से चार पुत्र
कन्हैयालाल (१८६६-१६२३), ननन््दलाल (१८६४८-१९३७), सोहनलाल (१६०४-
१६६१) मौर गोपाललाल (१६१४) हुए । ज्येष्ठ पुत्र ने इण्टर की परीक्षा देकर
कलकत्ता के इलाहाबाद वैक में कायं किया ! वहीं उदर रोग के कारण उनका देहान्त
हो गया । दूसरे पुत्र ने हाईस्कूल तक शिक्षा पायी । अनेक प्रकार के व्यपार--
दूकान, प्रेस--मे असफल रहकर उदर रोग से पीडित हुए ओर दैवगति को प्राप्त
हुए । तृतीय पुत्र ने बी० एस-सी० और बी० टी० तक शिक्षा प्राप्त को।
कानपुर, जौनपुर, लखनऊ में अध्यापक रहने के बाद बाबू जी की मृत्यु
के उपरान्त १६४५ में कलकत्ते अपनी ससुराल चले गये। कलकत्ता और
आसनसोल में अध्यापक रहे । रिटायर होने के बाद कालरा से ग्रसित
होकर देह त्याग किया । गोपाललाल ने एम० ए० (हिन्दी), एम० एड०
तक शिक्षा प्राप्त की । लखनऊ, बनारस, इलाहाबाद के बाद अलीगढ मे धमं
समाज टीचर्स ट्रेनिंग कॉलेज में सनु १६७५ तक अध्यापन कायें करके अवकाश्च
ग्रहण किया । कन्हैयालाल के दो पुत्र ओर एक पुत्री, नन्दलाल के एक पृत्र ओर
एक पत्ती, सोहनलाल के तीन पत्र मौर तीन पृतियां तथा गोपाललाल के एक
पुत्र और तीन पृत्रियाँ हुईं । सभी के विवाह हो गये हैं और सभी के पुत्र-पुत्रियों
से यह परिवार फल-फूल रहा है।
बाबू जी के पाँच छोटे भाई--गौरीशंकर, रामचन्द्र, रामकृष्ण, बालक्ृष्ण
और मोहनलाल थे बाबू जी के पिता जी ने दोनों बड़े भाइयों के विवाह कर दिये.
थे । परन्तु तीनों छोटे भाई अल्पावस्था में ही थे कि इनके पिता जी का देहावसान
हो गया था। रामक्ृष्ण अल्पावस्था में ही काल-कवलित हो गये थे। बालकृष्ण
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