बांगलादेश के अंचल से | Bangal Desh Ke Anchal Se
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
76.28 MB
कुल पष्ठ :
209
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about सुर्यप्रसन्न बाजपेयी - Suryaprasann Bajapeyi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्र
सुजला सुफला
शस्यश्यामला बंग भूमि
हरा-भरा देश । इ्यामल सुषमा-दोभित छोटी-छोटी नदियों के तीर ॥
नारियल, सुपारी, श्राम, कटहल के बगीचों में बसे हुए छोटे-छोटे गाँव ॥
नयनाभिराम हरियाली । स्वच्छ प्राकाश में सुबह-शाम हूंसों श्नौर बगुलों की
पाँतों की उड़ान झौर पूजा-गृहों में शंख, घड़ियाल-घण्टों की ध्वनि । कहीं हरे-हरे
नारियल से लदे पेड़, कहीं हरी-पीली सुपारी के गुच्छे, कहीं झाम, कटहल,
जामुन से लदे वृक्ष भ्रौर चहुचहाते गगन-बिहारी पंछियों का दल । बरीसाल
जिले में कहीं रेल नहीं थी। नाव शोर स्टीमरों से सब दाहरों में श्ौर
पड़े गाँवों में यातायात किया. जाता था । मुख्य उपज धान, पटसन भोरं
नारियल, सुपारी की थी । इन्हें बेचकर स्थानीय श्रधिवासी-गण झपनी
झाजीधविका निर्वाह करते थे
लोग ज्यादातर भात शभ्ौर मछली का कोल (रखा) खाते थे। चाय यों
शाबंत के बदले हरे नारियल (डाब) का पानी पीते थे । डॉक्टर लोग उसको
सोडा-वाटर झौर लेमोनेड से अधिक उपकारी बताते थे ।
यह ज्वार-भाटों का देश था । दिन में दो बार नदियों श्रौर नालों में
पानी बढ़ झौर घट जाता था । किश्तियाँ या नावें इसी प्रवाह में ऊपर-नी ले
देश-विभाजन के पुर्वे पूर्वी पाकिस्तान के इस झंचल में जमींदार, महाजनें,
ँ,
दूकानदार, डॉक्टर, वकील, अध्यापक आर सरकारी ध्रफसर नब्बे प्रतिशत
रो
User Reviews
No Reviews | Add Yours...