बांगलादेश के अंचल से | Bangal Desh Ke Anchal Se

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Bangal Desh Ke Anchal Se by सुर्यप्रसन्न बाजपेयी - Suryaprasann Bajapeyi

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about सुर्यप्रसन्न बाजपेयी - Suryaprasann Bajapeyi

Add Infomation AboutSuryaprasann Bajapeyi

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
प्र सुजला सुफला शस्यश्यामला बंग भूमि हरा-भरा देश । इ्यामल सुषमा-दोभित छोटी-छोटी नदियों के तीर ॥ नारियल, सुपारी, श्राम, कटहल के बगीचों में बसे हुए छोटे-छोटे गाँव ॥ नयनाभिराम हरियाली । स्वच्छ प्राकाश में सुबह-शाम हूंसों श्नौर बगुलों की पाँतों की उड़ान झौर पूजा-गृहों में शंख, घड़ियाल-घण्टों की ध्वनि । कहीं हरे-हरे नारियल से लदे पेड़, कहीं हरी-पीली सुपारी के गुच्छे, कहीं झाम, कटहल, जामुन से लदे वृक्ष भ्रौर चहुचहाते गगन-बिहारी पंछियों का दल । बरीसाल जिले में कहीं रेल नहीं थी। नाव शोर स्टीमरों से सब दाहरों में श्ौर पड़े गाँवों में यातायात किया. जाता था । मुख्य उपज धान, पटसन भोरं नारियल, सुपारी की थी । इन्हें बेचकर स्थानीय श्रधिवासी-गण झपनी झाजीधविका निर्वाह करते थे लोग ज्यादातर भात शभ्ौर मछली का कोल (रखा) खाते थे। चाय यों शाबंत के बदले हरे नारियल (डाब) का पानी पीते थे । डॉक्टर लोग उसको सोडा-वाटर झौर लेमोनेड से अधिक उपकारी बताते थे । यह ज्वार-भाटों का देश था । दिन में दो बार नदियों श्रौर नालों में पानी बढ़ झौर घट जाता था । किश्तियाँ या नावें इसी प्रवाह में ऊपर-नी ले देश-विभाजन के पुर्वे पूर्वी पाकिस्तान के इस झंचल में जमींदार, महाजनें, ँ, दूकानदार, डॉक्टर, वकील, अध्यापक आर सरकारी ध्रफसर नब्बे प्रतिशत रो




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now