श्रीगोविंद निबंधावली | Sri Govinda Nibandhaavalii

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हू सके | इससे महाशज নলভা यन दुत हष) ভিজা জবান মিছা हो जगदीश दुृशेबकर सोधे काशी कोट गये ओर महाराजकर कई वार बुलानेपर सी चहाँ वहीं आये | काशीम वी उठका स्वर्गंधालहुआ | संचत १८५७ बि० मैं उच्त.. मिञ्रजीके पुत्र प० हव्रीनाराणणजी पिछ बह मान आये । दे भी अपने विताके समान उयोतिषशाह्क्ते जाता थ । महारजने उन्हें सदा परिड्चत बना लिया। महाराज मिन्रजीके गुणोपर मुग्ध थो। इब्पी कारण सिश्वज्ञीकों, इच्छा मे रहते हुए भी, महाराजके अनुरोधसे वद्ध मातम दल वर्ष रहना पा) लक्ष्सीनाशयव णजीकी পতল पदवीस कोद सन्तान जही भी} शस छिये काशीमें ही इसबार उन्होंने पृण्िडत विक्का मिशज्ञी सिंगणकी कन्यासे अपना विवाद किया ओर वद्ध मान मद्दाराजके ऋरईबार बुलाने- पर फिर संधत १८७१ सिन्य वहः चरे अन्ये ¦! অহী জু नयी पत्नोंसे तीन पुत्र हुए । सबसे बड़े पण्डित जयनारश्यणजो थे, जिन्होंने खबसे पहले शनीगज्जकी कोयलेकी स्वानोंका पन्ना लगाया था ओर सबसे छोटे हमारे चरितनायकक्े-पिता पण्डित गड्डानारायणली थी । पण्डित गड़ानारायणज्ीकों शिक्षा-दीक्षा कलकत्त में ही हुई थी। वद्र प्रसिद्धं नेता हिन्दू पैट्रियट! के सम्पादक হলত বায कृष्णादास पार उनके सहपाठी ओर मित्रोंमें थो | शिक्षा खमावकर उन्होंने अहु- शेजञ्ञी आफिसोंकी दछाली आरस्म की | उन्हींके घर लंचत १६१६ वि०-- की कातिधः शुक्ल तुतीयाके शुभ मुत्त मैं हथारे चरिननाथक धं गोविन्द्नाशायणजी का जन्म कलछकते में ही हुआ | प० गड़ावारायणजीको देववाणी संस्कतथाषासे असुराग था। अतः पुञक्ी. संस्कृतकी शिक्षा देनेके विध्यरासे उन्होंने काशीसे एक महाराष्यु पण्डितकों बुलवाया और कार वषं तीन লাভ तीन दिवको अवस्था माघ शुक्ला पश्चमीकों गोविन्दतारायणजीकों अक्षररम्त कशया पया} वे बड़े कुशान्र-वुद्धि थे | चरपर हो उन्होंने. ूछ महा-




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