दो खुदाई खिदमतगार | Do Khudai Khidmatgaar

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Do Khudai Khidmatgaar by महादेव देसाई - Mahadev Desai

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्राक्कथन ५ कर्ंक लगा है वह वापस जेल जाने से नहीं घुछ सकता, उसका मुआवज़ा লী सिफ़े मौत ह्वी हो सकती है । ओर लीजिए | सय्यद अब्दुछ वदृद बादशाह एक प्रमुख कार्य- कर्ता, मज़हबी नेता ओर ज़मींदार थे। हालांकि वह सरहद के ब्रिटिश ज़िलों के नहीं बल्कि मलकन्द्र एजेन्सी के निवासी श्र, मगर वह भी तीन सालतक ज़मानदी दफ़ा के शिकार रहे। यहाँनक कि १६३९ की सन्धि के समय भी वड़ रिहा नहीं किये गये । सब उनके जराजीर्ण पिता ने, जो अपनी मौन के द्वार पर खड़े थे, इस खयाल से उनको जमानन जमा कर दो कि मरने से पहले एक बार में अपने बेटे का मुंद देख सकूँ । सय्यदसाहब को अपने इसतरह छूटने पर बढ़ा क्लोभ हुआ और इसके लिए उन्हें इनना अधिक लज्जानुभव हुआ क्रि विना इसकी परवा करिए कि वृह पिताजी को कितना कष्ट होगा, उन्हाने पिस्तार स अपनी हत्या करी | जो दुर्दम्य क्रोम ऐसे शूरवीरों को पंद्ा करती है, उसके बारे में कौन अधिक न जानना चाहेगा ? ख़ानबन्धुओं के हज़ारीबाग-जेल से द्रुटने के वाद, जां कि वै शादी क्रदी भ्र मुखे उन्हें काफ़ी निकट से भली-भांति जानने का सोभाग्य प्रात्र हुआ है । इन भाइयों के प्रति मेरे हृदय में जो आदर ओर प्रेम था) उसे इस घनिघ्रताने भोर भी गहरा कर दिया हे। यही नहीं, बल्कि इस घनिएता का उपयोग कर, उनके जीवन-सम्बन्धी सब तरह के प्रश्नोत्तर करने की भी मेने उनसे पूरी छूट छी है। इन प्रश्नोत्तरों के बीच उन्होंने अपनी जो कहानी बताई, वह इतनी हृदयस्पर्शी है कि उसके कुछ अंशों को लेग्बट




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