युध्द भाग १ | Yuddha [ Part - I ]
श्रेणी : साहित्य / Literature
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लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
480
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)युद्धे :: ७
क्या वात है, प्रियतम ?“
बाली चुपचाप, एकटक ताय को देखते रहै । इस तारामें जाने उन्हे
पहले क्या इतना अच्छा लगता था। आज तो उसे देखकर मन में कहीं
कोई स्फूरति नही जागती । वही प्रतिदिन का देखा हुआ साधारण चेहरा ।
क्या देते कोई उसको ?
“कुछ नही ! दस, मन ठीक नही है।” वे भावशुल्य स्वर मे बोले ।
तारा चितित-सी खड़ी, उन्हे देखती रही, फिर जैसे कुछ न समझ्ष-
कर अपने आप ही वोली, “किसी को भेजकर वेय को बुलवाऊ ? अगद
को भी संदेश भेजू ?”
“दैद्य को कष्ट देने की आवश्यकता नही ।” वाली कुछ रूखे स्वर में
बोले, “और अंगद इस समय कहां गया है ?”
“सुग्रीव ने ही कही भेजा है ।” तारा ने उत्तर दिया, “आजकल बेदे
को चाचा की देखा-देखो समाज-सुधार का दौरा पड़ा है ।”
ब्या कर रहा है ?”
“लोगों को समझाया जा रहा है कि मदिरापान न करें, उससे स्वास्थ्य
भी बिगड़ता है और घन का अपव्यय भी होता है ।”
“ऊंह !” वाली का मुंह जैसे कड़वा गया, “जो पीता है अपने घन की
व्यय कर पीता है और अपना स्वास्थ्य वियाड़ता है; पर दूसरों के निजी
भामलों में दांग न भड़ाई, तो सुप्रीव ही क्या !”
तारा ने परिचारिकाओं को जाने का संकेत किया और आकर वाली
की शैया पर, उनके निकट बैठ गयी। थोड़ी देर उनके केशों में अगुलियां
फिराती रही और फिर पूछा, क्या मन बहुत खराब है ?7
वाली को तारा के हाथ का स्पर्श अच्छा लगा था। मन में हलकी-सी
ऊप्मा जागी । आंखें सोली | क्षण भर ही देखा होगा कि आंखों की भगिमा
फिर बदल गयी । पहले जैसे भावहीन स्वर मे मोचते, “ग योह देर विश्राम
करूंगा । तुम জী)”
बाली का मन स्वस्थ नहीं हुआ । कुछ भी ऐसा दिखायी नहीं पड़ रहा था,
जो उनके मन मे रंचमात्र भी उत्साह जया सके । भत्पेक वस्तु से वितृष्णा,
अत
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