शरणागत | Sharanagat

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Sharanagat by वृंदावनलाल वर्मा - Vrindavan Lal Verma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शरणागत ६ तीव्र स्वर से कद्दा, नीचे उतर श्राओ । उससे मत बोलो, उसकी श्रौरत बीमार है ।? हो, मेरी बला से |? गाड़ी में चढ़े हुये लठेत ने उत्तर दिया। भे कसाइयों की दवा हूँ ।! और उसने रजब्र को फिर धमकी दी । नीचे खड़े हुये उस व्यक्ति ने कह्दा, खत्ररदार, जो उसे छुश्रा | नीचे उतरो नहीं तो तुम्हारा सिर चूर किये देता हूँ | वह मेरी शरण आया था ।? गाड़ीवान लठत भख-सी मारकर नीचे उतर श्राया । नीचे वाले व्यक्ति ने कहा, संत लोग अ्रपने घर जाओ्रो । राहगीरों को तज्ञ मत करो | फिर गाड़ीवानसे बोला. “जा रे, हाँक ले जा गाड़ी, ठिकाने तक पहुँचा आना तब लौटना । नहीं तो अ्रपनी खैर मत समभिकयों | ओऔर तुम दोनों में से किसी ने भी कभी इस बात की चर्चा कहीं की, तो भूसी की आग में जलाकर खाक कर दूगा !? गाड़ीवान गार्ड लेकर बढ़ गया | उन लोगों में से जिस श्आादमी ने गाड़ी पर चढ़कर रजत्र के सिर पर लाठी तानी थी, उसने छुब्ध ख्वर में कहा । दाऊजू , आगे से कभी आ्रापके साथ न श्राऊंगा ।? दाऊजू ने कहा, न आना । में अकेले ही बहुत कर गुज़रता हूँ। परन्तु बुन्देला शरणागत के साथ घात नहीं करता, इस बात की गॉाँठ बाँध लेना ।?




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