कृष्ण-गीता | Krishna Geeta
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
162
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about दरबारीलाल सत्यभक्त - Darbarilal Satyabhakt
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(१५)
तब कृष्ण कहते हैं:--
मरने पर् पुरुषाथ मल क्या ?
म्द की श्रगार क क्या
मोक्ष परम पुरुषार्थ यहीं का कर्मयोग-आधार |
यहीं है मोक्ष और संसार ॥
जव अगुन अपना दैन्य प्रकट करके कहता है कि-
छोटी सी यह बुद्धि है, है सब्र शात्र अथाह |
अगर थाह উন चद्ध हो जाऊँ गुमराह ॥
तत्र श्रीकृष्ण अमय-दान देते इए कहते है--
बुद्धि अगर छोटी रहे तो भी हो न हताश ।
छोरी सी ही आँख में मर जाता आकाश ॥
फिर कहते हैं--.
पाक-शात्र जाने नहीं करें स्वाद-प्रत्यक्ष |
* निपट अपाचक लोग भी स्वाद परीक्षण दक्ष ॥
विषय की गहनता को देखते हुए इतना सुवोध विवेचन करने में
श्री सत्ममक्तजी को आश्रयजनक सफलता मिली है। जगह जगह
उदाहरण ओर् दृष्टान्त इतने “फिट! दिये गये हैं कि विषय एकदम
हृदयंगम हो जाता है जैस:---
कठिन कतैत्य है अर्जुन कठिन सत्पन्थ पाना है ।
विरोधो से मरी दुनिया समन्वय कर॒ दिखाना है ।
. अनछ की ज्योति है विजली चमकती जोकि बादलमें |
- बनाया नीर के घरम अनलने आशियाना है ॥
User Reviews
No Reviews | Add Yours...