डॉ० बाबासाहब आंबेडकर | Dr. Babasahab Aambedakar

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Dr. Babasahab Aambedakar by प्रशांत पाण्डेय - Prashant Pandeyवसंत मून - Vasant Moon

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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डा. बाबासाहब आंबेडकर / 11 लेकिन अपने जिस प्राध्यापक के साथ उन्होंने भारत लौटने पर भी पत्र व्यवहार बनाये रखा। वे थे डा. सेलिग्मन । जब वे सिडनहम में प्राध्यापक थे तब उन्होंने अपने कुछ विद्यार्थियों को भी डा. सेलिग्मन के पास भेजा था वह अमेरिका में अध्ययन करते समय भी भारतीय समस्याओं पर विचार किया करते थे। उनके पठित निबंधों और प्रस्तुत किये गये प्रबंधों का भारत से गहरा संबंध होता था। उन्होंने अमेरिकावासी नीग्रो समाज के सवालों का भारतीय अस्पृश्यों की समस्या के साथ कभी एकीकरण नहीं किया) अपने “भारतीय जाति” निबंध में उन्होने यह सिद्धांत प्रतिपादित किया है कि अस्पृश्य, समाज से संबंधित भेदभाव वांशिक नहीं है, वरन वे भारतीय संस्कृति का एक अविभाज्य अंग है । उनके भविष्य के सारे अनुसंधानों का यही मूल स्रोत रहा है। इस तरह भीमराव आंबेडकर अपनी ज्ञान साधना में रत रहे। वे प्रतिदिन लगातार 18 घंटे अविराम साधना में लीन रहते। सन्‌ 1915 में उन्होंने “एडमिनिस्ट्रेशन एंड फायनांस ऑफ ईस्ट इंडिया कंपनी” विषय पर अपना शोध प्रबंध प्रस्तुत कर एम.ए. की उपाधि प्राप्त की + इन्ही दिनों ये “नेशनल डिविडेंड ऑफ इंडिया-ए हिस्टारिकल एंड अनेलेटिकल स्टडी” विषय पर भी शोध कार्य कर रहे थे। उन्होंने यह शोध प्रबंध सन्‌ 1916 में कोलंबिया विश्वविद्यालय को विचारार्थ प्रस्तुत किया ओर इसे सन्‌ 1925 में लंदन की पी. एस. किंग एंड कंपनी में “दि इवोल्यूशन ऑफ प्राविन्शियल फायनांस इन ब्रिटिश इंडिया” नाम से प्रकाशित किया। (बाद में कोलंबिया विश्वविद्यालय ने उन्हें पी-एच. डी. की उपाधि से विभूषित किया।) इसी समय सन्‌ 1916 में डा. गोल्डन बेझर ने मानववंश शास्त्र पर एक परिचर्चा का आयोजन किया था। इस परिसंवाद में भीमराव आंबेडकर ने “कास्ट्स इन इंडिया-देयर मेकेनिजम, जेनेसिस एंड डेवलपमेंट” नामक निबंध मई, 1916 को पढ़ा था। केवल तीन वर्षों में डा. आंबेडकर ने अमेरिका में जो काम कर दिखाया उस विद्वता की ऊंची उड़ान और ज्ञान की महान प्रगति के प्रति अपना आदर प्रकट करने के लिए विश्वविद्यालय के कला विभाग के प्राध्यापकों ओर विद्यार्थियों ने उनका सत्कार किया। सन्‌ 1917 तक उन्होने जो उपाधियां प्राप्त कीं, उनसे उनके अत्यधिक ज्ञान की उपलब्धियों की धरोहर वे अपने साथ लाये थे} | 1. झेलियट : 87 2. झेलियट : 81 8. अनुसंधायक डा. कार्नेलान ने इस अप्रकाशित प्रबंध की प्रतिलिपि 1979 में कोलंबिया विश्वविद्यालयों से पहले प्राप्त कर, लेखक को उपलब्ध की है। 4. ब्लेक क्लार्क : रीडर्स डायजेस्ट, मार्च 1950




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