प्रयाग-प्रदीप | Prayag Pradeep

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Prayag Pradeep by श्री शालिग्राम श्रीवास्तव - Shri Shaligram Shrivastav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१८ प्रयाग-प्रदीप के निकट आ गए, क्योंकि दोनों नदियों के जल के मिलने का ( कल-कल ) शब्द सुनाई पड़ता है ।” इस के आगे भरद्वाज मुनि के आश्रम में पहुँचने और वहां विश्राम करने का ¢ वणन दै | फिर आगे ५५बें सगं मे भरद्वाज मुनि ने रामचंद्र को प्रयाग से चित्रकूट जाने का जो रास्ता बतलाया है, वहं भी उल्लेखनीय है, क्योकिं उस से उस समय कै प्रयाग के निकटवतीं स्थानों की स्थिति का कुछ पता चलता है । लिखा है कि भरद्वाज ने कहा, “राम, आप गंगा और यमुना के संगम से पश्चिमाभिमुख होकर यमुना के किनारे-किनारे कुछ दूर तक चले जाइए; फिर उसे पार करके कुछ दूर और चलिए, तो आप को बरगद का एक बड़ा वृक्ष मिलेगा, जिस के चारों ओर बहुत से छोटे-छोटे पोधे उगे होंगे । उस बड़े बृक्ष में कुछु श्यामता भी आप को मिलेगी | उस के नीचे सिद्धगण बैठे हुए तप कर रहे होंगे। वहां से एक कोस पर नील-वर्ण के वृक्षों का एक सघन बन मिलेगा, जिस में पलाश, बेर और जामुन आदि के बहुत से वृक्ष होंगे। बस उसी बन से होकर चित्रकूट जाने का रास्ता है |? फिर उसी कांड में भरतजी का चित्रकूट जाते हुए प्रयाग में भरद्वाज के आश्रम में उहरने तथा युद्ध कांड म रामचंद्रजी का पुष्पक विमान पर चढ़ कर प्रयाग होते हुए अयोध्या लोटने का वणन है, परंतु उन में प्रयाग के विषय में कुछ अधिक इत्तांत नहीं है । ऊपर क बत्तांत से विदित होता है कि रामायणं के समय मेँ प्रयाग एक तपोभूमि थी, जिस के इर्द-गिर्द बड़े-बड़े बन थे | उन दिनों अक्षुयवट इत्यादि तीथं-स्थानों का कहीं पता न था, जिन का उल्लेख पौराणिक काल के साहित्य में बड़े महत्व के साथ हुआ है । एेसा जान पड़ता है कि यही रामायण का “श्याम रंग का वयब्र्त जो उस समय यमुना के उस पार था, पीछे किसी समय इस पार श्रक्त्यवट के रूप म परिणत कर लिया गया; और फिर धीरे. धीरे सरस्वती, वासुकि तथा अनन्य तीर्थो का प्रादुर्भाव हो गया | ग्रच्छा अब प्रयाग के विषयमे महाभारत की कथा सुनिए | आदिपव के अध्याय এও में लिखा है कि प्रयाग में सोम, वरुण और प्रजापति का जन्म हुआ था । बनपव अध्याय ८४ में प्रयाग और अध्याय ८५ में प्रयाग तथा प्रतिष्ठानपुर (मँसी) वांसुकी ( बसकी, नागबासू ) और दशाश्वमेध ८ दारागंज ) का वणन है | इसी पव के अध्याय ८७ में लिखा है कि उसी पूव-दिशा में पवित्र ऋषि-सेवित, महाभारत १ यह स्थान इस समय प्रयाग के कनंतलगंज मुहछ्ले में हे। यहाँ मरद्वाज का तो नाम ही है, वास्तव में महादेव का एक बढ़ा मंदिर और कुछ न्य देवी-देवताओों के छोटे- टे देवालय हँ । इन्हीं सव की पूजा होती हे ।




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