खंडहर की आत्माएं | Khandhar Ki Aatmaye

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Khandhar Ki Aatmaye by इलाचन्द्र जोशी - Elachandra Joshi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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परिरखौता ७ खाती, और व दूध ही पीती है, इसलिये दिन पर दिन दुब होती चली जाती है। कभी चह यह कहती कि छड़की का स्वभाव बड़ा बिजित् है और उसे दूध रुचता ही नहीं है, और कभी ( जिस दिन वह विशेष रूप से अपनी मालकिन से असंतुष्ट रहती थी ) उसे यह कहते सुनायी देता कि “बह ( साऊकित >) बिठिया को न भर-पेंट खाना देती है, न दूध और स्वयं उसके ( कछड़की के ) हिस्से का जी खाना डटकर खा लेती है, दूध भी गटक जाती है। बिटिया जब एक दिन बीसार पड़ेगी, उसे क्षय रोग होगा, मरेगी, तब उसकी अम्माँ ' जानेगी | बिटिया के बाबू भी इसी रोग से मरे थे, अब उसकी अर्म भी उसे इसी रोग का शिकार बनाने जा रही डे, ऐसी चुदैर है ह! में तो आज छुटकी से खूब झगड़ आयी, मालकिन !” (वह मेरी माँ को माक॒किन कहकर पुकारा करती थी ओर अपनी मालकिन को प्ुटकीः कहकर ) उसी मारुकिन अपने शरत पति की वूघरी पतनी थी, पहली पत्नी भर छुकी थी। मैंने देखा कि अपनी मालकिन ( छुटकी ) से वह केवल इसलिये नाराज रहती थी कि वह बिटिया को अच्छी तरह खिरती.पिव्याती नहीं | पर स्वयं अपने सम्बन्ध में तह कथी पक शब्द्‌ भी न कहती और न कभ्मी इस बात की कोई शिकायत मैंने उसके मुँह से सुनी कि उसकी मालकिन उसे ग्रायः चौबीसों धंटों की अवैतनिक नौकरी के बदली मड़वे की रोटी के एक या दो टिक्कडों के अतिरिक्त और कभी कुछ भी खाले को नहीं देती और न वर्षो' से बदुछकने को कोई ककरा कपड़ा ही उसे दिया गया है | दूसरे छोग उसकी स्लीत्तरी स्थिति की कार- शिकता से भली-भाँति परिचित थे, पर वह कभी भूछ कर भी अपने व्यक्तिगत सुख-दुःख के सम्बन्ध में किसी के आगे सूँद,न खोलती | बिटिया के पीछे वह एक प्रकार से पागछ सी हो गयी थी, उसके गुर्णो का बखान' करते करते बह थकती न थी । केवछ रोना यही था कि




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