सागर की लहरों पर | Sagar Ki Lahron Per

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Sagar Ki Lahron Per by डॉ० भगवतशरण उपाध्याय

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बम्ब्श शोर पोर संवद्े बीज ११ रोज़ बकालत और बहस करते थे तो निश्चय इस कारण नहीं कि वह उसी लन्दनका रहनेवाला मुजस्सिम अंग्रेज था जिसकी हक़ीक़तमे उनको शुबहा था, बल्कि इस कारण कि साहब-आदसी ठहरा, कहीं उलछठा-सीधा न समझ बैठे ! सर, मतलब यह कि शायद एक प्रकारकी दिमाशी स्थितिमें इस प्रकारकी बातें भी सोची जा सकती हैं भौर जब में इधर कई दिनों घहराते समुन्दरसे केवल दो अंगुलके फ़ासडेपर लेटा शिथ्षिक्ष पड़ा' रहा तब कुछ ऐसी ही अजीब बातें मनमें उठती रहीं । कुछ ऐसी कि जब पहले मुझे इल बबदील साहबकी बातें याद आती तब हंसी रोके नहीं रुकती थी और अब में हँसा ती महीं ही, उनके तथ्यपर विचार तक करने छगा, बावजूद इसके कि मेरे बिस्तरकी दीवारसे समुच्दर करा रहा था और मेरा जहाज-+- जान बाके', जो स्वयं विदेशी जहाज है, तारवेका--दरा मीछ प्रति घण्टेकी रफ़्तारस घछा जा रहा था । मेरा दिमाग चबकर खा रहा था, दिनों घक्‍कर खाता रहा था। इससे पहले में रामन्दर पाए जानेवाले जहाजपर नहीं चढ़ा था। सुना था कि शामद्री बीमारी हो जाती है, पेंटमें कुछ टिक नहीं पाता, सब कुछ निकष जाता है, पानीकी एक बद तक । और इसीसे बम्बईगें उसके लिए दवाद्रया भी बहुत हूंढी थीं, पर भे माशरू के यहाँ मिल्लीं ने किम्पक्ि यहाँ । मुझे उतकी विशेष जरूरत थी क्योकि प्रहे, भौर कभी-कभी तीचे भी, पेद्रोलकी गन्धसे मोटर तकमें मेरा जी मिचक्वाने छगता है । इजाहाबादरों बाम्बई आते समय गाड़ीमें एक सज्जवकों जो सिर दबाये গান वटे रेखा आर पकर जाना कि देनी चालसे उनका सिर लकरा रहा है तो उर कर और गहरा गया । यहु सन्ने. हाजी थे जो अदन' तक जहाजपर हो आये भ॑ । बम्बईम जी स्वान मिली तो मेने पक मित्रकी बातपर यक्रीम कर किया था कि दवा खाओ মান জাতী समृन्दर तुम्हारे जिश्ममें कुछ दिलों নক মিলান ঘ देगा, दवा तक नहीं, पामीकी बुँढ तक नहीं, फिर अपने भाप




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