विवेक और साधना | Vivek Or Sadhna

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किशोरलाल मशरूवाला - Kishoralal Masharoovala

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केदारनाथ - Kedarnath

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ब 1. ওরে कहनेमें हमें कोओ संकोच नही होता 1 १४ अदा करे, जनसेवा करे, अच्छे वातावरणका सेवन करें ओर धीरे-धीरे अपनी योग्यता विविध प्रकारसे बढ़ाये, बनके किमे शायद यह्‌ पुस्तकं अुपयुक्त न हो । भिसलिञे जिन दोनों प्रकारके जिज्ञासुओंको बता देना ठीक होगा कि यह्‌ पुस्तक दोनोंके लिजे है। पहले वर्गके साधकोंको यह पुस्तक अनेक अ्रमों, कल्पनाओं, गूढ़ तत्त्वों वगैरामें फंसनेसे बचायेगी, जितने साधन-मार्गका जिस प्रकार और जिस दृष्टिसे अभ्यास करना जरूरी है, असका स्पष्ट मार्गदर्शन करेगी तथा जो दूसरे वर्गके सत्संगार्थी हैं, अनकी विवेक-बुद्धिको जाग्रत करके अुसका अुपयोग करना सिखायेगी और स्वयं अपने साथ तथा कुटुम्ब ओर समाजके साथ शुद्ध सम्बन्ध रखना और कतेव्य पालन करना सिखायेगी। जिसमें कोओ विषय जैसा नहीं है जिसे केवल पू० नाथ पर या पू० नाथके माने हुओ किसी शास्त्र पर श्रद्धा रखकर ही मान लेना पड़े, या जो पू० नाथ या किसी औरको अपना तन-मन-धन अपण करके ही प्राप्त किया जा सक्ता हो, या जो किसी गृढ भूमिका पर आरूढ होनेके बाद ही समन्मे आ सकता हो । जिसलिओ जिस किसीमें सन्मां पर चलनेकी थोड़ी भी वृत्ति है या जिसे किसी साधन-मा्मका प्रयत्न करनेकी अभिलाषा है, आन दोनोंके लिजे यह पुस्तक मागैददौक होगी । জিতল छात्र-छात्राओं, पति-पत्नी, नवदंपति, समाजसेवक वगैरा सभीको स्प करनेवाले विषयों पर विचारप्ेरक ओर मुत्साहवर्धेक अध्याय मिकेगे । जितना जिस पूस्तकके बारेमं _निशचयपूर्वक ` बहुत संभव है कि तरह-तरहके धर्मों, सम्प्रदायों, रूढ़ियों और श्रद्धाओं वगैराके बलवान संस्कारोंमें पले हुओ पाठकोंकों यह पुस्तक कुछ आघात पहुंचाये। कुछ जैसे भी विचार असके पढ़नेमें आयेंगे, जिनकी . अआसने आशा न रखी हो और अनसे कदाचित्‌ प्रारंभमें अुसे असंतोष हो, ... आसका जी दुखे और मन संशयके चक्करमें पड़कर घबरा जाय। हम ` . खुद. पू नाथके साथ अपने प्रारंभिक परितवयमं काफी घबराहटमे पड़े ये) अपने संप्रदायोके बारेमे हमारी भव्ति और श्रद्धा जितनी दृढ़ थी, , अतने ही तीव्र आघात भी हमें रगे । जब तक हम यह्‌ नहीं तय कर । सके कि नाथजीके विचार सही हैं या हमारे सम्प्रदायके मत सही हैं, तब




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