हिंदी तो मराठी संतो की देन | Hindi to Mrathi Santo Ki Den

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका [ ন্ত गावे गुरु सनक सनंदन ज्यम (यम) अ्रनल गणेश उच्चार करे चन्द्रमा दिनेस है। राम कहे गोकुल मे नंदन मुकुन्द भये টার समा मघे नाचत महेस है। नरहरि-रामदासी है महाराष्ट्रीय सनन्‍्तों में नरहरि, नरहरि सोनार, नरहरि माली, नरहरि मोरेश्वर, नरहरि और नरहरि-रामदासी नामक छुद्द सत हो चुके हैं । दो नरहरि तो ऐसे है कि जिनके आगे जाति, आम, गुरु किसी का प्थक्‌ नाम मी जुडा हुआ नहीं है। ऐसी दशा मे हिंदीयदकार कौन नरहरि है, इसका निर्य करना कठिन है | इनका अ्रप्रकाशित हिन्दी-पद रामदासी मठ से प्रात्र हुआ है । इसलिए, इन्हे रामदासी ही मानना अ्रधिक उचित जान पडता है । इनकी गुरु-परम्परा इस प्रकार है-- मीमस्वामी-नरहरि-खमथं रामदास । इनका समय सन्‌ १६५० से १७०० माना जाता है । इनके मराटी-ग्र॑थ श्राय टीकाः, !रामजन्म, महामारत', शतमुख रावणवधः, और '्रमंग” आदि हैं। इनकी जो हिन्दी-स्वना लेखक को उपलब्ध हुई है, वह इस प्रकार है-- नंद के नंदन कौस (कंस) निकंदन त्रिभुवन वंदन श्रावठु है। वेद पुराण बखानत मारत व्यास गुणी ज्यन गावतु है | इन्द्र॒ फणीन्द्र दिवाकर चन्द्र चतुसुंख रुद्र मनावत है| सूरत देखत मन को वृत नरहरि के मन मावतु है । इसमें यत्र-तत्र शब्द-योजना को आलुग्रासिक वनाकर नाद-माधुय बढ़ाने का बल दिखाई देता है। पद मे प्रवाह है | मानपुरी इनकी देवगिरि (दौलतावाद) मे समाधि है। समाधि-तिथि ज्येष्ठ शुक्ल ५. रविवार, शक-संवत, १६५२ है। इनके जीवन-व्यापार के सम्बन्ध में विशेष ज्ञात नहीं है। इनके फुटकल पद्‌ उपलब्ध है। इनका मराठी के अतिरिक्त हिन्दी पर भी अधिकार जान पड़ता है! इनके हिन्दी में कई अ्रप्रकाशित पद लेखक को प्राप्त हुए हैं जिससे ज्ञात होता है कि इन्होंने उत्तर भारत की यात्रा ही नहीं की, वहाँ कही काफ़ो समय तक सें रहे भी है।




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