म्रग ज्ञानी | Mragnayani
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
20 MB
कुल पष्ठ :
468
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)गनयनी , ५
अरे रे रे रे रे !!! लाखी ने हँसते हुये होठो' पर दोनो हाथ रख
लिये और आंखे मद ली । उछल-उछल कर और अटद्वृहास करते हुये
निन्नी ने उसको कीचड़ से सान दिया । है
अब मेरी बारी है। पास पडे हुये गोबर को झपटकर लाखी ने
उठाया और निन्नी की ओर बढ़ी । हर
वे दोनो समवयस्क थी अष्यु लगमग पन्द्रह सोलह वषं । परन्तु
निन्नी वलिष्ठ ओौर पृष्टकाय थी, नाद्ली दुबली भौर छेरी । निन्नी
गोचर रै सत्कार से डरना नही चाहती थी.।
आभो, आजो, इसी की कमी रह गई है सो पोते देती हूँ ।” निन्नी
ने हँसते हुये कहा ।
लाखी सहसी नही। निन्नी से जा चिपटी। निन्नी ने लाखी के
गोबर वाले हाथ को अपने एक हाथ की मुट्ठी मे पकड़ लिया और दूसरे
से गोबर की छीनकर उसके माथे और एक गाल पर मल दिया।
अरी री री ! तुमने तो मेरी कलाई ही तोड दी ।' लाखी ने हँसी
से कराहा |
निद्नी ने सोचा कुछ ज्यादती हो गई,। लाखी को छोड दिया और
समुस्कराती हुई तनकर खडी हो गई ।
बोली, अच्छा, अच्छा, वुरान मानो । तुम मुझे लगा दो जहाँ
तुम्हारा जी चाहे ।'
'ऐसे नही । तुझको हराकर लगाऊंँगी तब तो बात है। लाखी ने
गोबर वाली मुट्ठी को तानकर कहा ।
निन्नी हार नही सकती थी परन्तु वह हारना चाहती थी। भागने
के बहाने एक दो डग हटी । लाखी उस पर झपटी। निन्नी ढीली पड
गई | लाखी ने लिपट कर उसके माथे और दोनो गालो प्र गोवर
पोतं दिया।
व्याज समेत पा लिया, लाखी खिलखिलाती हुई वोली, तुम्टारे
गोरे गालो पर कैसा वैल है अहाहा हा 11 उौना सा लग गया 111
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