भाषा-भूषण | Bhasha-Bhushan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[1.१४ ] अभेद दोनों हयँ, जेसे--अनन्वय | प्रतीति-प्रधान, जहाँ समता का केवल बोध होता है, जेसे--उस्मक्षा। गस्प-प्रधात, जहा समता गम्य हा जथात्‌ रक्षित हो; जैते--अन्योकिति ( अग्रस्तुत-प्रशंसा 2 । वेचि्य-प्रधान, जहाँ समता वचित््य से युक्त हो; जैसे--श्छेप । जहाँ दो पदार्थों में विरोध दिखाया जाय वहाँ विरोधमूलक बर्गे होगा; जैसें--विरोधाभास, असंगति आदि। जहाँ छड़ी के समान कोई चर्गन हो वहाँ श्टंखलासूलक; जेसे--एकावली, सार आदि । जहाँ किसी तक आदि का सहारा लिया जाय वहाँ न्यायसूल्क । इसके तीन मेद हो * सकते हैं; चाक्य-न्याय, तके-त्याय और लछोकन-व्यवहार-न्याय । जहाँ दो वाक्यों का समन्वय चमत्कारपूण हो वहाँ वाक्य-न्याय; जैसे --काव्याथापत्ति, मिध्याध्यवसिति आदि । तकरन्‍्याय, जहाँ किसी तक द्वारा चमत्कार उत्पन्न किया गया हो; जैसे--कराव्यलिंग, हेतु आदि। लोकव्यवहार, जहाँ प्रचलित बातों के आधार पर चमत्कार की उद्धावना हो ; जैसे-परिश्वत्ति समाध, प्रत्यनीक आदि । शअपहवम्रूलक अलछकार वे हं, जहां किसी ग्रकार के भाकव-गोपन का वणन हो; नेसे-~्यानोक्ति, गृढीत्तर आदि। काय- कारणु-सिद्धांत वाले अलकारों में काय और कारण का वणन रहता है जैले---अतिशयोक्ति (अक्रम, चपछ ओर अत्यंत ), चिदोपोक्ति आदि । घिशेषण-वैचित्य के अंतर्गत परिकर आदि आवेंगे । कवि समयमसूलक अलंकारों मे कवि-समाज मे प्रचरित परपरा के सहारे कोई बात कही जाती है; जैसे--रूपकातिशयोक्ति, भोदोक्ति, . तद्गुण आदि । हिंदी में आचाय भिखारीदास ने वर्गीकरण करने का प्रयत क्रिया है । - उन्होंने उपमादि, उद्रेक्षांदि नाम से वर्गों का निर्देश किया है,. पर इन नामों से कोई ठीक संकेत नहीं होता । : » हिंदी सें यों तो रस और अलंकार के प्रथों का निर्माण मंहाकंवि केशव- दास के पहले से ही होने रूगा था, पर काव्य-रीति पर .शास्त्रीय. ढंय से ` इन्दाने.टी सबसे प्रथम अंथ लिखे । इसीसे ये हिंदी के प्रथम आचाय'*, कहे




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