भाषा-भूषण | Bhasha-Bhushan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
156
श्रेणी :
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No Information available about विश्वनाथप्रसाद मिश्र - Vishwanath Prasad Mishra
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[1.१४ ]
अभेद दोनों हयँ, जेसे--अनन्वय | प्रतीति-प्रधान, जहाँ समता का केवल
बोध होता है, जेसे--उस्मक्षा। गस्प-प्रधात, जहा समता गम्य हा जथात्
रक्षित हो; जैते--अन्योकिति ( अग्रस्तुत-प्रशंसा 2 । वेचि्य-प्रधान,
जहाँ समता वचित््य से युक्त हो; जैसे--श्छेप ।
जहाँ दो पदार्थों में विरोध दिखाया जाय वहाँ विरोधमूलक बर्गे
होगा; जैसें--विरोधाभास, असंगति आदि। जहाँ छड़ी के समान कोई
चर्गन हो वहाँ श्टंखलासूलक; जेसे--एकावली, सार आदि । जहाँ किसी
तक आदि का सहारा लिया जाय वहाँ न्यायसूल्क । इसके तीन मेद हो
* सकते हैं; चाक्य-न्याय, तके-त्याय और लछोकन-व्यवहार-न्याय । जहाँ दो
वाक्यों का समन्वय चमत्कारपूण हो वहाँ वाक्य-न्याय; जैसे --काव्याथापत्ति,
मिध्याध्यवसिति आदि । तकरन््याय, जहाँ किसी तक द्वारा चमत्कार
उत्पन्न किया गया हो; जैसे--कराव्यलिंग, हेतु आदि। लोकव्यवहार,
जहाँ प्रचलित बातों के आधार पर चमत्कार की उद्धावना हो ; जैसे-परिश्वत्ति
समाध, प्रत्यनीक आदि । शअपहवम्रूलक अलछकार वे हं, जहां किसी
ग्रकार के भाकव-गोपन का वणन हो; नेसे-~्यानोक्ति, गृढीत्तर आदि। काय-
कारणु-सिद्धांत वाले अलकारों में काय और कारण का वणन रहता है
जैले---अतिशयोक्ति (अक्रम, चपछ ओर अत्यंत ), चिदोपोक्ति आदि ।
घिशेषण-वैचित्य के अंतर्गत परिकर आदि आवेंगे । कवि समयमसूलक
अलंकारों मे कवि-समाज मे प्रचरित परपरा के सहारे कोई बात कही जाती
है; जैसे--रूपकातिशयोक्ति, भोदोक्ति, . तद्गुण आदि ।
हिंदी में आचाय भिखारीदास ने वर्गीकरण करने का प्रयत क्रिया है ।
- उन्होंने उपमादि, उद्रेक्षांदि नाम से वर्गों का निर्देश किया है,. पर इन
नामों से कोई ठीक संकेत नहीं होता ।
: » हिंदी सें यों तो रस और अलंकार के प्रथों का निर्माण मंहाकंवि केशव-
दास के पहले से ही होने रूगा था, पर काव्य-रीति पर .शास्त्रीय. ढंय से
` इन्दाने.टी सबसे प्रथम अंथ लिखे । इसीसे ये हिंदी के प्रथम आचाय'*, कहे
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