रामचन्द्र शुक्ल और उनका साहित्य | Ramchandra Shukla Aur Unka Sahitya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
244
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भ्रपनी महत्ता के स्वयं ही अ्रपल्ेचित («वे सम्मान लेने के নাবিল
जानते थे । | চি
शुक्लजी हिन्दी-भाषा ओर साहित्ये के सम्ताम-रेक्षक ये अपनी
साहित्य-मीमांसा मे वे राष्ट्रीय भौर मानवीय मूल्यों का ध्यान रखते हुए
भी निगृढ़तम काव्य-सौदयं का उद्घाटन कर सकते थे । उनके प्रयास से
हमें केवल इस तथ्य का ही ज्ञान नही हुआ कि हिन्दी-भापा और साहित्य
में भदभुत प्राणवत्ता है भर उसके भावी विकास में मानव-कल्याण को
कल्पनातीत संभावनायें है बल्कि यह भी उद्घाटित हुआ कि राष्ट्रीय
और अंतर्राष्ट्रीय संदर्भ में भी हिन्दी-साहित्य का विशिष्ट स्थान है।
उन्होने ही यह प्रमाणित किया कि संस्क्ृत भ्रौर अग्नेजी से अलग हिन्दी
भाषा का श्रपना स्वतंत्र स्वरूप और निजी अस्तित्व है। अपने स्वाभिमान
ध्रोर आत्म-विज्वास को साहित्य का स्वाभिमान और विश्वास बना कर
ही वे अपने इत उद्योग मे सफन'हो सके । वाग्युदध श्रौर तर्को-वितर्का तथा
कुतकों के हाह्मरव के बीच एकांत साहित्य सावना एवं तपोनिष्ठता हारा
उन्होने उक्त सत्य का साक्षात्कार कराया । वास्तव में वे हिन्दी-भापा
और साहित्य के सजग प्रहरी थे । विधटनकारी तत्त्वों को साहित्य की
सीमा से दूर रखने श्रौर विजातीय तत्त्वों के नाश्षका री प्रभाव से उसे
बचाये रखने को वे अपने जीवन का चरम आदर्दा मानते थे । नागरी-
प्रचारिणी सभा, काशी, से प्रकाशित होने वाली हिन्दी नाम्नी पत्रिका
के प्रकाशन अवसर पर जो पत्र उन्होने लिखा था वह उनके साहित्यिक
च्यक्तित्व का सच्चा परिचायक है । पत्र यो है
“हमारी परम्परागत भाषा को हमारे व्यवहारों से अलग करने का
प्रयत्न बहुत दिनों से चल रहा है पर अपनी स्वाभाविक शक्ति से यह
अपना स्थान प्राप्त करती चली आ रही हैं| इधर जब से हिन्दी को
राष्ट्र-भाषा बनाने की चर्चा छिड़ी है तब से इसके विरोधी बडे प्रचंड वेग
से इसकी गति रोकने के अनेक उपाय रचने में लग गए हैँ । इस अवसर
पर अ्षपनी भाषा की रक्षा का भरपुर उद्योग हमने न किया तो सब
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