ज्ञान की गरिमा | Gyan Ki Garima
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
170
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ज्ञान की गरिमा
| हे हू
नारी का तेज
१
मेरा नाम अपाला है। मैं महि ्रत्रि कीपुत्रीहु। मेरे
माता-पिता की बडी श्रभिलापा थी कि उनके सूने घर को सतान
का जन्म सनाथ करे । घर भर मे विपाद की एक गहरी रेखा
छायी रहती थी। मेरा जन्म होते ही उस आश्रम मे प्रसन्नता की
सरिता बहने लगी, हर्ष का दीपक जल उठा, जिससे कोना-
कोना प्रकाश से उदभासित हो गया । मेरा शेशव ऋषि-बालको
के सग मे बीता मेरे बाल्यावस्थामे प्रवे करते ही पितृदेव के
चित्त मे चिन्ता ने घर किया जव उन्होने मेरे सुन्दर शरीर पर
दिवत्र (वेत कुष्ठ) के छोटे-छोटे छीटे देखे । हाय 1 रमणीय
रूप को इन रिवत्र के उजले चिल्ल ने सदा के लिए कलकित
कर डाला । पिताजी ने अपनी शक्ति भर इन्हे दूर करने का
श्रश्नात परिश्रम किया तथा निपुण वैद्यो के श्रच्रुक श्रनुलेपनो का
लेप लगाया परतु फल एकदम उलटा हुआ । ग्रौषध के प्रयोगो
के साथ-साथ विपरीत अनुपात से मेरी व्याधि वढने लगी,
छोटे-छौटे छीटे बडे घव्वो के समान दीख पडने लगे । श्रततो-
गत्वा मेरे पिता ने अ्रौषव का प्रयोग चिल्कूुल छोड दिया ।
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