जवाहर किरनावली | Jawahar Kirnawali

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Jawahar Kirnawali  by शोभाचन्द्र - Shobhachandra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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संवत्सरी [ ७ कांतिक शुक्ला ७ जब तक तुम्हारा मासतिष्क और हृदय निंदा ओर अशंता को समान रूप में नहीं महए. करता, समझना चाहिए फ तुमने तब तक परमात्मा को पाहिचाना ही नहीं है | 27५ ११ রা ६ শপ ४ ग श्र প্র प्रशशा ओर निन्‍्दा सुनकर हर्ष ओर विषाद की उत्पात वद्धे के विकार के कारण होती है। बुद्धि का यह -विकार परमात्मा की आआर्थना से निरशेष हो जाता है । মত ২৫ ২? ১ নম चर न वि লী जिस दिन पृथ्वी पर पतित्रवा का आस्तिंत्व नंहीं रहेगा, उस दिन सूर्य, पृथ्वी और समुद्र अपनी-अपनी मर्यादा त्यायं देंगे | ५११ ৬২০ টন ২৭ শট ৫৬ ५४ गक जो पुरुष परधन ओर परस्री से सदव यत्नपूर्वक वचेता' रहता है, उसका कोई कुछ भी नहीं विगाड़ सकता । 2৯8 শট ११ ८ ০০ „ च , ০৩ ২ প্রি শত तुम्हार घुतस्कर। का दुस्स्कार दवा देते ই श्रीर्‌ तुम गफूलत में पड़े रहते हा | हृढ़ता के साथ अपने; सुसंस्कारों की रक्षा करो तो आत्मा की बह्त उन्नति होगी। `:




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