कालिदासमं नमामि | Kalidas Namami
श्रेणी : जीवनी / Biography
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
163
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कविका विस्व १३
स्वामी वा अभिश्नाप फला-देश्व छूटा, नगरी छूटी काम-
त्रो के मधुभरे विल्लौरी चपको के दौर चट, मदिर प्रभिसार
छूटे, प्रमदवन श्रासाद छूटे, स्ववीया प्रिया छूटी, परकीया
वाणिनो । कवि श्रमिशप्त, रामगिरिवामी यक्ष, मुलमी
शिलाओो पर मेव की छाया देख डोला, फिर वोला--
सत्प्ताना त्वमति श्रएा स्त्पयोद प्रियाया *
सदेश मे ह्र धनपतिकफोधविश्नेवितस्य !
गन्तव्या ते वसतिरलका नाम यक्षेश्वराणा
बाह्मोद्यानस्पितहरज्चिरश्चन्द्रकाघोतहूर्म्या॥
सतप्तो के भुलसे हियो के, हे मेंघ, तुम शरण हो--इसीसे
माँगता हूँ | याचना ठुकराशो नही--कुब्रेर के क्रोध से प्रिया से
विछुड मुझ विरही का सदेश उस तक पहुँचाझ्नो | जाना तुम्हें
यक्षेश्वरो वी नगरी उस अलका को होगा जिसके घवल प्रासाद
निकटवर्ती उद्यान मे बसे शिव के सिर को चर्द्रिवा से चमकते
रहते हैं ।
वाणी फूठ वहो, निर्वाध । “मेंधदूत' की अ्प्रतिम गीतिका
श्रमायास रच गयी । मध्यप्रदेश की कतुओ का महारक्वका
रूपायित हो चुका था। दक्षिण दिद्या ने पुकारा, विदिशा की «
मालविका मच पर उतरी । उज्जयिनी की मालिनें कवि की
आँखों चढी, विशाला की श्रगनाप्रो वा कुटिल अ,भग मर्म में चुभ
गया । महाकाल की समाधि टूटी--नमेरु की डाली से चक्राकृत
धसु तान कामनेक्पायको बेघ दिया, गजचर्म क्षत-विक्षत हो
गया । तनुता खोकर भी श्रनग ने जो उन््माद बोया शिव ने उसे
गन्धमादन पर मारे-मारे फिर पौध-पौध, पोर-पोर काटा। कुमार-
सम्भव हुआ ।
मायु पक चली थी, कैशावलि द्याम इवेत । प्रौढ की मने
श्रिय उहक-डहव यलती है, अनस्फूट कलिका के प्रति वरिष
स्परित हती है--जैसे श्रग्निमित्र वौ, मालविका कै भ्रति, शिव
बी, उमा के प्रति, पुरूरवा की, किशोरी उवंश्ञी के प्रति, दुष्यन्त की
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