ज्ञानोंदय | Gyanoday
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
19 MB
कुल पष्ठ :
547
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१० ज्ञानोदय [ जुलाई
मन के द्वार को उन्मुक्त खोल देते हे तो हम अपना, अपने आचार्य का और विश्व
में ज्ञान का जो नित्य अधिष्ठात देवता है, इन तीनों का गौरव बढ़ाते हैं । हम में से
प्रत्येक की स्थिति उस किसान की ऐसी होनी चाहिये जो अपने खेत में अन्न उत्पन्न
करने के लिये घोर परिश्रम करता हुआ केवल अप्नी ही ओर देखता है और
अपने ऊपर ही निर्भर रहता है, लेकित जब उसके कोठ1र अन्न से भर जाते हैँ तब
उन्हें बिना भेदभाव के सब मनुष्यों के लिये खोल देता हैँ। इसी प्रकार हममे
से प्रत्येक को ज्ञान और चरित्र-साधन की कला सीखनी हूँ। उसमें किया हुआ
परिश्रम केवल हमारा ही होगा, लिकिन उसके फल मे सब कासाभ्ना होगा।
यही मानव धमं का सच्चा मार्ग हं, इसीमे मानचौय विचारो की अनेक धाराएँ
एकत्र मिलती हे।
ओ
(+ পা तिगे रा की कर গা
समय॑ गोयम, मा पमायए
| १ |
| कुसग्मे जह ओसबिन्दुए थोक॑ चिट्ठइ लबमाणए ।
न एवं मणुणाण जौवियं समयं गोयम, मा पमायए ॥
काकौ नोक पर स्थित ओसकी वृद की तस्र मानव जीवन
क्षणस्थायी है। अन गौतम, क्षणमात्र भी प्रमाद नं कर |
२ |
दल्लहे खल् माणुसे भवे चिरकालेण चि सव्वपाणिणं ।
गाढा य विचागकम्गुणो समय गोयम, मा पमायए ।
চি चिरकाल कं वादभी मनुप्य जन्म का भिना वट्टा दुर्लभ है
क्योकि पुराने कर्मो का फल दुनिर्वार होता ड़े। गोतम, क्षणमात्र
भी प्रमाद न कर ।
इह कामग णेहि मुच्छिया, समयं गोयम › मा पमायए +
| धर्म की श्रद्धा होने पर भी धर्म का आचरण बड़ा कित हैँ ।
মিন में धर्म श्रद्धाल भी काम भोग के प्रलोभना में मुच्छित
हहत हैं । अने हे गौतम, क्षणमात्र भी प्रमाद न कर । `
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