श्री कृष्ण चरित्र | Sri Krishana charitr

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १३) -1/0४्ा७ के पुराण और इतिहास नहीं हैं. परन्तु भार्य जाति के समय में छिखे गये हैं और उनमें से अधिकतर तो उस समय लिखे गये है जब आयं ज्ञाति अपनो राजनैतिक स्वतंत्रता को खी बैठी थी और अपने धर्म कर्म की नए करफे (हिन्दू के कंक्रित माम से पुकारी जाती वी, जब कि उसको - अपने आपको, अपने घर्म का, अपनी मान मर्यादा तथा अपनी ` स्त्रियों के सतीत्व की रक्षा के हेतु अपने प्राचीन आचार व्यच- हारों को छोड़ना पड़ा. जिससे उनका प्राचीन অল कर्म ऐसा दब गया कि उसके चिन्ह भी शेष न रहते, यदि अंग्रेजी शाह्य के आगमन के साथ उख पर प्रकाश की. आभा न पड़ती और उसके ऊपर से कूड़ा करकर उठा देने का उन्हें ( आय ज्ञाति को ) अवसर न मिलता । ` ` प्रत्येक सुशिष्धित आयं जानता है कि पुराण १८ है परन्तु - इनके अतिरिक्त बहुत सी ऐसी पुस्तक है जो उपपुसणों के नाम से प्रसिंद्ध है, जो ऐसे किससे कहानियों से भरी है कि - कोई मसुष्य भी उन्हें पढ़कर सत्य का वास्तविक नहीं कहं . शकता । उनका অজি হা লাকা কী ऐसी' बातों से भरा है जो बुद्धि और प्रकृति दोनों के बिरुद्ध हैं और उनके अनुमान होना भी असतम्मव है । । ` अमरे तथा आयं विद्धानौं मै समक्त होकर यह्‌ व्यवस्था . दी है कि वर्तमान पुराण बह पुराण नहीं जिनका वर्णन उप- ~ नियमों वा अन्य प्राचीन मन्थो मे पाथा जाता है। उन अंग्रेजी ` „ घुखण तत्वञ्त्ताशों ने बत्तमान पुराणो का समनिरूपण च्या है जिसके मानने से कदापि यह परिणाम नहीं निकलता कि वर्तमान कार + स्ले कोई भी विक्रम संचत्‌ के बहुत पश्चात्‌ फे : है। इनमें से बहुत पुराणों का. समय तो १७ वीं या १५ वीं : आताब्दि तक्‌ निश्चय किय/है। इसके अतिरिक्त पुराणोंमें * 755 উতর




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