प्रेम - पुष्पान्जलि | Prem - Pushpanjali

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( कविवर वादू मेथिलीशरण गुप्त ) ( १ ) अन्तयामी अखिलेश चराचर-चारी ! जय निगुण, सगुण, भनादि, झादि, अविकारी पातादै कोद पारम नाथ! तुम्हारा , चलता है यदह संसार तुदा से सारा॥ (২). पाकर ই विश्वाघार ! तुम्हारा ही बल , है निश्वल यद्‌ आकाश और यह भूतल । बहता है नित जल-वायु, भअनल जलता है, ट्रम-गुल्म-लता-दल फूल फूल फलता है॥ ३ हू इश ! तुम्दी से रवि भ्रकाश पाता है , कृशा हुआ जलाघर फिर विकाश पाता है। तारे करुए्शा-विन्दु तुम्हारे प्यारे, न्यारे न्यारे ह खेल तुम्हारे सारे॥ ( ४ ) _ हम जय तक अपना जन्म धरा पर धारें , हो जाती हैं उत्पन्न दूध की धारे। १




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