देश सेवकों के संस्मरण | Desh Sewakon Ke Sansmaran

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Desh Sewakon Ke Sansmaran  by विष्णु प्रभाकर - Vishnu Prabhakar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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डा० मुख्तार अहमद अंसारी १५ नहीं लिखा उसमें मुझे खास तौर पर अपने ऊपर पाबंदी लगानी पड़ी । ऐसा करके मेंने करीब-करीब अपने साथ जल्म किया । मगर डा० अंसारी के स्वगेंवास पर मुझे कोई ऐसा आत्म-निग्नह करने की जरूरत नहीं । कारण यह है कि वे निस्संदेह हकीम अजमल खां की तरह ही हिंदू-मुस्लिम ऐक्य के एक प्रतिरूप थे। कड़ी- सें-कड़ी परीक्षा के समय भी वह अपने विश्वास से कभी डिये नहीं । एक पक्के मुसलमान थे । हजरत मृहम्मदसाहब कौ जिन खोगों ने जरूरत कं वक्त मदद की थी, वे उनके वंशज थे और उन्हें इस बात का गवं था । इस्लाम के प्रति उनमं जो दढता थी ओर उसका उन्हें जो प्रगाढ़ ज्ञान था उस दृढ़ता और उस ज्ञान ने ही उन्हें हिंदू मुस्लिम-ऐक्य में विश्वास करनेवाला बना दिया था। अगर यह कहा जाय कि जितने उनके मुसलमान मित्र थे उतने ही हिंदू मित्र थे तो इसमें कोई अत्युक्ति न होगी। सारे हिंदुस्तान के काबिल- -काबिल डाक्टरों में उनका नाम लिया जाता था। किसी भी कौम का गरीब आदमी उनसे सलाह लेने जाय, उसके लिए बेरोक- टोक उनका दरवाजा खला रहता था। उन्होंने राजा-महाराजाओं और अमीर घरानों से जो कमाया वह अपने जरूरतमंद दोस्तों मे दोनों हाथों सै खचं किया । कोई उनसे कुछ मांगने गया तो कभी एसा नहीं हआ कि वह्‌ उनकी जेव खाली कयि बगेर लौटा हो ओर उन्होंने जो दिया उसका कभी हिसाब नहीं रखा। सेकड़ों पुरुषीं और स्त्रियों के लिए वह एक भारी सहारा थे। मुझे इसमें तनिक मी सदेह नहीं कि सचमुच वह्‌ अनेक लोगों को रोते-बिलूखते छोड़ गये हैं। उनकी पत्नी बेगमसाहिबा तो ज्ञानपरायणा हैं, यद्यपि वह हमेश्चा बीमार-सी रहती हैं। वह इतनी बहादुर हैं और इस्लाम पर उनकी इतनी ऊंची श्रद्धा है कि उन्होंने अपने प्रिय पति की मृत्यु पर एक आंसू भी नहीं गिराया । पर जिन अनेक व्यक्तियों को में याद करता हूं वे ज्ञानी या फिलासफर नहीं हैं । इंश्वर में तो उनका विद्वासं हवाई ह, पर डा० अंसारी मं उनका विद्वासं जीवित विश्वास था । इसमें उनका कोई कसूर नहीं । डाक्टर-




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