कल्कि या सभ्यता का भविष्य | Kalik Ya Sabhayata Ka Bhavishya

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Kalik Ya Sabhayata Ka Bhavishya by लक्ष्मण नारायण गर्दे - Lakshman Narayan Garde

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कल्कि का भी कोई कारण होना - चाहिये । ईश्वर यदि बिना किसी कारण कै टो सकता है तो. जगत्‌ भी बिना किसी कारण के दो सकता है 1 ऐसा दोपपूर्ण जगत्‌ किसी कुशछ और समर्थ ईश्वर का कार्य नहीं हो सकता । इतिहास मे शवर की आत्मसत्ता का कोई साक्षी-प्रमाण नहीं. है । एम० लोइसी कहते हैं, “इतिहास लेखक इतिहास से ईश्वर को नहीं हटाता बल्कि इतिहास में उसे कहीं कभी ईश्वर मिलता ही नहीं ।”? इम छोगों की जो यह . लाल्सा है कि यह जगत्‌ जेसा दै. उससे अधिक न्यायी दो ओर ` इसकी, भूल सुधर जार्यै ओर ओसि पु जायें, इससे यही जाहिर होता है कि इस अगत्‌मे सर्वे अन्याय ही भरा हुम ई । ईववर ˆ की सत्ताका क़ोई एेखा मरत चि नहीं दील रहा-दे, कोई ऐसा प्रमाण नहीं मिल रहा है जिसके आधार पर हम यह कह सकें कि, “लीजिये, यहाँ या कहीं भी ईश्वर मौजूद है।” जव * लोग उसकी सत्ताके चिह्ठ दिखाने को कद्द रहे हों तब ईश्वर , का कुछ न चोलना अनीश्वरवादिता का सबसे प्रचक्. प्रमाण है । इन सब बातों के होते हुए भी यदि कुछ छोग दीनतावश ईश्वर का पछा पकड़े रहें तो आश्रय की तो' क्या; पर दुःख की बात - अवश्य'है | उनका यह विश्वास उतना ही दुमैल है जितना कि , छबते को तिनके.का सदारा, फिर चदे पौराणिकं रोग, जिनकी इ्तिदी वहेः जो भी कहा करं । ११




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