कच्चा चिट्ठा | Kaccha Chitttha
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
426 KB
कुल पष्ठ :
22
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १५ )
रहित न्याय ह्ृृष्टि से विचार किया जाय तो वह सर्वया
अविद्वान थे क्योंकि उन्हों ने अपने पुस्तकों में स्वंधा वेद
चिरद्ध और अशुद्ध लेख लिखे हैं अतएव चह अपने लेखानु-
` ब्रार अछुर ठहरेंगे इसके सिवाय समाजोंमें अनेकों सभासदु
जो अविद्वान् पाप कर्म करने वाले और अनाचाएी होंगे জু
दयानन्दूज्ीके ले घानुसार अखुर राक्षस और पिशाच हुए पत्येके
को आय कहना सर्वथा अशुद्ध और दयानन्द जो के मन्तव्य
से चिरुद्ध है । भायोद्ेश्यरलमाला में लिखा है कि जी श्रेष्ठ
खभाव धर्मात्मा एतोपकारी गौर सत्यविद्यादि गुण युक्त है
उनको आर्य्य कहते हैं । अब ध्यान दीजिये कि समाजो मे
पैसे लोग सौ में पांच भी कठिनता से दोंगे, फिर আত
समाज कसा £
खंचबत् १६६४३ की छपी हुई संस्कार विधिके पृष्ठ १९ पर
लिखा दे জি জী चाहे मेरा पुत्र परिडत, सद्सद्धिवे की
शत्रओों को जीतने चाहा, सूवय॑ जीतने में न आने वाला युद्ध
में गमन हए और निर्भयता करने बारा शिक्षित चाणी का
बोलने वाका, सद वेद बेदांग विद्या का पढ़ने और पढ़ाने
तथा सर्वाय का मोगनै बाला पुत्र हीय वह मांसयुक्त भ्रात
को पकाके पूर्वोक्त छतयुक्त खाय तो वेस. पुन होनें का
` खम्मव है ॥ इति ॥
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