भारत वर्ष का इतिहास वैदिक तथा आर्ष पर्व | Bharat-varsh Ka Itihas vaidik Tatha Aarsh Parva

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रथम भाग | (३) हों तो आप का मन कितना उत्साहित होता और अनुकरण की प्रबछ इच्छा आप को किस प्रकार वशीभूत कर छेती है ( परन्तु किसी अन्य के विषय में ऐसे वृत्तान्त श्रवण कर आप का हृदय उतना उद्देछित नहीं होता ); एवं यदि आप के पुरुपाओं ने किसी स्थान विशेष में अपनी बुद्धिमत्ता से सुका्यों के सम्पादन में बारम्बार कीर्सि प्राप्त की हो तो उस स्थान के साथ तथा उस भूमि ( देश ) के साथ भी जहां ऐसे महापुरुषों ने जन्म ग्रहण किया हो आप का रनह हो जाता हैं । यही कारण है कि आन भी लक्षीं अयोध्या, मथुरा प्रभति के नामों से उत्सांहित हो रहे हैं । जो बात एक अथवा मनुष्यों के एक छोटे समूह के विषय में सत्य हैं वह एक मनुष्य महामण्डछ वा जाति के विपय में भी चरितार्भ हो सकती है, क्योंकि मदुप्य व्यक्तियों के समारोह से ही एक मनुष्य महासमूह वा नाति बनती है । बहुत से काय्य एस हैं जिन्हें सारी जाति मिल कर ही कर सकती है। यदि कोई सामाजिक कुरीतियां देश में हों तो सारी जाति को मिल कर ही सुधार का यत्न करना पढुता है, क्योंकि यदि नाहि का एक भाग झुरीतियों से पीड़ित हो तो शेप भाग भी सुखी नहीं रह सक्ता । यदि किप्ठी देश में वाणिज्य करना बुरा समझा जाय तो इस का परिणाम यह होगा कि उस देश के निवासी सब के सब दरिद्री बन जांयंगे अतएव आवश्यक हैं कि जाति अपने धार्मिक, सामाजिक तथा अन्यान्य प्रकार के नियमें को भी भांति सोच समझ कर बनांव और इन नियमों के निर्धारण के छिए उन सामाजिक तथा अन्यान्य प्रकार के नियमों पर भी विचार करठे जिन का पालन इस के पुरुपा किया करते थे अर्थात्‌ अपने पुरुषाओं का: इतिहास मलीमांति अध्ययन कर उक्त प्रकार के गम्भीर नियमों के निर्माणार्थ उद्यत हो ताकि उन्नति का मारे उस के लिये सुगम हो जाय । इतिहास उप्त विद्या का नाम है जिस के अवढोकन से हरे किसी जाति के पुरुषाओं के _ बृत्तान्त अर्थात्‌ उन की उन्नति और अवनति, उन की चष्टा और शिथिछ्ता उनकी शान्ति ओर दूधता एवं उन के सुखों और दुः्खों को पूरा २ ज्ञान हो । न जआार्य्य नाति की उन्नति और अवनति, उस की चेष्टा और शिथिख्ता उस की श्रान्ति और दक्षता, अनेक समय उस के नेताओं की सूर्खता तथा स्वाथपरता के




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