दीप जले, शंख बजे | Deep Jaley Shankh Baje

Book Image : दीप जले, शंख बजे  - Deep Jaley Shankh Baje

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर' - Kanhaiyalal Mishra 'Prabhakar'

Add Infomation AboutKanhaiyalal MishraPrabhakar'

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
१६ दीप जरे, शंख बजे उधरसे कई बच्चे आ जुरते । उनका भोजन एक हंगामा दही होता । एक कहता मेँ दालसे लंगा, दूसरा तरले । तीसरेका नाक पूते, चोधको पानी देते | एक इस बात पर ऐठता कि मैं गोदीमें वेदगाः, दसस रूट जाता कि उसे गोदमें क्‍यों लिया ? सबको सँमालते और इस संभालमं पूरा रस लेते। उनका भोजन सचमुच एक दृश्य होता ! उनकी चाय-गोष्ठी भी इसी तरह काफी दिल्लचस्प होती। एक ओर गोष्टीके भी वे संयोजक होते। वह सिर्फ सर्दियोंमें जमती। वे बीचमें जमीनपर, अपने आसन पर उकड़ें बैठते और दोनों तरफ पलंगों पर बैठते बाल्न-गोपाल । वे गन्ना छीलते और पोरी बच्चोंको देते रहते। पहले- पीछेंका हंगामा यहाँ भी मच जाता, पर वे उसे सँभालते ओर गन्ना- गोष्ठी जारी रहती । इस गोष्ठीमं उस समय मजा आ जाता, जव श्रचानक हममे से कोष तरुण आ पहुँचता । वे एक पोरी उसकी ओर मी बढ़ाते। इचरसे हाथ बढ़ानेमें जग भी ढील हुई कि वे कहते--ओ्रोहों, अब तो आप बहत दी बड़े हो गये हैं।” और तभी वे अपनेको तीन ग्रत्तरोमे उण्डेल-सा देते-- ले बेटे !! और पोरी हमें चूसनी पड़ती--हँसते-दँसते ! वे थके-थकाये, पसीनेसे तर बाहरसे ल्ौटते--फल्न, सब्जी, मिठाई और जाने क्या-क्या लिए । बच्चे दोड़ पड़ते--बाबा आये, बाबा आये |” कोई खरबूजा माँगता, कोई मिठाई, कोई कमर पर चढ़ता, पैरोंकी लिपट जाता । वे परेशान हो जाते, पर कभी न चिल्लाते । लाइमें ही कहते--.- श्रे, ताला तो खोल लेने दिया करो । आते ही दुन्द मचा देते हो । জী कुछ है तुम्हारे ही लिये तो है ।? एक दिन बच्चोंका यह आक्रमण आरम्म हुआ ही था कि में आ गया। मैंने उन्हें डांदा, तो मुझपर ही एक डांट पड़ी--श्ररे तुझे




User Reviews

  • ranvirccs

    at 2019-06-14 07:09:35
    Rated : 10 out of 10 stars.
    दीप जले शंख बजे , कन्हैया लाल मिश्र प्रभाकर जी द्वारा रचित एक संस्मरण है / लेखक ने बहुत ही खूबसूरती से अपने संस्मरणों की प्रस्तुत / "मेरे पिताजी " इसका उत्तम उदाहरण है।
Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now