वैज्ञानिक चिन्तन और आधुनिक हिंदी काव्य | Vaigyanic Chintan Aur Aadhnik Hindi Kavya

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Vaigyanic Chintan Aur Aadhnik Hindi Kavya by वीरेन्द्र सिंह - Virendra Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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{ १० 9) हम यह तो जात सकते हैं कि प्रकृति के कार्यव्यापार कैसे सम्पन्न होते हैं, पर यह्‌ प्रन पना कि ये क्या हैं और “क्यों” होते हैं, कम से कम यह विज्ञान के क्षेत्र के बारह की वस्तु है। इस समस्त स्थिति का पर्यवेक्षण हमें निम्न ভিসা में अपरोक्ष रूप से प्राप्त होता है-- इन प्रश्नों का उत्तर तही होताः यह ইলাহা सिद्धांत है आप क्या हें और क्यों हुये, ह्म नहीं जानते थर कंसे हये, इसका हमें अथुभान है ! समरसता-रूप--इन प्राकृतिक-घटताओं से एक तथ्य यह भी प्रकट होता है कि सम्पूर्ण जेव भौर अर्जंव ({ 01९५८ चत्‌ 10 छार शठा ) जगत एके स्वेदः चलत इकाई है मौर इसका सचालन प्राकृतिक नियमों पर आधारित है । इत तियरमों के हारा यह भी स्पष्ट होता है कि प्रकृति की घटनाओं में जो परिवर्तत प्राप्त होता है, उनमें विरोधामास तो लगता है, पर सत्य में यह विभिन्नता ही कुछ इस प्रकार कार्यात्वित होती है कि उनमें धंतुलन एवं समरसता ( फागरा०79५ ) के दर्शन होते हैं। इसी तथ्य को प्रो ० आइ्टीन ने पूवे-स्थापित सामरस्य' की संज्ञा दी है जिसकी ओर प्रथम प्रकरण में संकेत किया जा चुका है । यदि इत विभिन्न घटनाभों का मूल्यांकन करता हो तो, मेरे विचार से, उतका सुल्यांकन इसी हृष्टि से अपेक्षिन है कि उनकी विषभता में एक अन्तर्निहिंत सामरस्य है जो प्रकृति का एक सत्य है । इसी प्राकृतिक-सत््य को हम विविध-रूपों एवं घठनाओं में साकार देखते हैं । छत का काव्य यदा कदा इसी तथ्य की प्रतिध्वनि करता: प्रतीत होता है । उदाहर्या स्वरूप उनकी ये निम्न पंक्तियां इसका प्रमाण है-- १-नई कविता (५-६), ५१० १६४ पर डा० विपितकुमार अग्रवाल की कवितां इस यूंग के दपबंदार ০ বা




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