आधुनिक पाश्चात्य दर्शन में अमरता की समस्या | Aadhunik Pashchatya Darshan Mein Amarta Ki Samsya
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
222
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about सीमा श्रीवास्तव - Seema Srivastav
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)निर्वैवक्तिक अमरता में दूसरा विचार इस प्रकार है कि मानव इस रूप में अमर है कि
वह ऐसे मूल्यों को स्थापित करता है या अनुभव करता है जो शाश्वत है जैसे सत्य, शुभ, सुदर
आदि। व्यक्ति अपने प्रयासों द्वारा स्वय में विशिष्ट गुणों का विकास करके शाश्वत मूल्यों को
आत्मसात कर लेता है और इन शाश्वत मूल्यों में भागीदार के रूप में वह अमर हो जाता है।
निवैयक्तिक अमरता की इस अवधारणा में मूल्यपरक गुणात्मक जीवन दीर्घ जीवन
(340810180৬5) से अधिक महत्वपूर्ण है। यहा जीवन का मापदण्ड आदर्श की मानव द्वारा किये
गए कार्यों, उसके द्वारा स्थापित मूल्यों एव प्राप्त किए गए आदर्शों के रूप में होता है न कि इस
रूप में कि वह कितने वर्ष जीवित रहा।
निर्वेयक्तिकं अमरता सामाजिक अमरता से भिन्न है। क्योंकि सामाजिक अमरता में
लगातार सामाजिक प्रभाव बना रहना चाहिए ओर यह अमरता मृत्यु के बाद प्राप्त होती है जबकि
निवैयक्तिक अमरता गुणात्मक ओर मूल्यात्मक अमरता है जिते मृत्यु से पूर्व ही पूर्णता की स्थिति
मे प्राप्त किया जा सकता हे । यहाँ व्यक्ति शाश्वत मूल्यों में भागीदार बनता है जबकि किसी अन्य
को इसका ज्ञान भी नहीं होता।
उदाहरण के लिए कला, विज्ञान, साहित्य, दर्शन, धर्म आदि के क्षेत्र के किसी भी महान
कार्य के सम्पन्न होने में समय लगता है किन्तु एक बार स्थापित होने के बाद यह शाश्वत हो
जाता है। कोई भी इसके स्थापित होने मे लगे समय के विषय में प्रश्न नहीं करता। जैसे कला
क्षेत्र की महान कृति देश, काल, व्यक्ति से परे होकर शाश्वत बन जाती है जिसका सभी लोग
आनन्द ले सकते हैं।
10
User Reviews
No Reviews | Add Yours...