ध्वनि संप्रदाय और उसके सिध्दांत भाग - 1 | Dhwani Sampradaya Aur Uske Siddhant Bhaag - 1

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Dhwani Sampradaya Aur Uske Siddhant Bhaag - 1 by डॉ भोलाशंकर व्यास - Dr. Bholashankar Vyas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १५ ) सारथि मिभश्र-(ख) श्रीकर का मत, उपादान से व्यक्ति का ्रहण--(ग) मण्डन मिश्र का मत, लक्षणा से व्यक्ति का ग्रहण--इस मत का मम्मट के द्वारा खण्डन--[ घर ) प्रभाकर का मत, जाति के ज्ञान के साथ ही व्यक्ति का सुर. वेयाकरणों का मत, उपाधि में संकेत--उपाधि के भेदोपभेद--जाति, गुण, क्रिया, यहच्छा--नव्य आालंकारिफों को अभिमत मत--संकेत के प्रकार आजानिक, भआधुनिक--पाश्चात्य विद्वान्‌ू तथा शान्दबोघ~~मरस्तू्‌, पेथा- गोरख, तथा प्रिस्स्कियिनि का मत~-पोर-योधल ( ?0-र0फ2] ) सम्प्रदाय 1 के तकंन्शास्त्रियों का मत--स्केलिगर का मत--जॉन लॉक का मत, जॉन लॉक तथा कॉन्डिलेक के मत से केवल “जाति! ( 5060168; 8०7९७ ) में संकेत--जॉन स्टुअ० मिल का मत--व्यक्तिगत नाम, सामान्य अभिघान ( कोनोटेटिव ) तथा विशेषण ( एट्रिब्यूट ) में संकेक--अभिषा की परिभाषा--बालक फो वाच्याथ का ग्रहण केसे होता हे--ब्लूमफील्ड का मत- प्राच्य विद्वानों के मत से शक्तिग्रह के आठ साधन--व्याकरण, उपमान, फोश, आप्तवाक्य, व्यवहार, वाक्यशेष, विवृति ( विवरण ), सिद्धपदसान्रिष्य -- अभिधा के तीन भेद--रूढि--योग--योगरूढि---भनेफाथवाची शब्दों के ০০০০ 2 মক রটনা १० मुख्याथनियामक, भतृ हरि का मत--रेजों ( ५6819प० ) के द्वारा इस का खण्डन उल्लिखित--रेओ के मत का खण्डन--संयोग, विप्रयोग, साहचय, विरोध, अर्थ, प्रकरण, _लिंग, अन्यशब्दसान्रिध्य, सामथ्यं/ भौचिती, देश, काल, व्यक्ति, स्वर, चेश--उपसंहार । तृतीय परिच्छेद लक्षणा एवं लक््याथं लक्षणा एवं लक्ष्याथ--लक्षणा की परिभाषा--लक्षणा के हेतुत्रय--निरूढा तथा प्रयोजनवती लक्षणा--रूढा फी छक्षणा मानना उचित या नहीं; দর रामकरण आसोपा के मत का खण्डन--उपादान लक्षणा एवं लक्षणलक्षणा-- मुख्याथ तथा लक्ष्याथे के कई संबंध--गोणी लक्षणा तथा शुद्धा लक्षणा--उप- चार--साहश्यमूलक छाक्षणिक शच्द से लक्ष्याथ प्रतीति कैसे होती है--इस विषय में तीन मत--गौणी के उदाहरण तथा स्पष्टीकरण-सारोपा तथा साध्यवसाना गोणी-लक्षणा के १३ भेदों का संक्षित विवरण--जहृदजह ल्लक्षणा जैसे भेद की फल्पना--विश्वनाथ के मत में लछक्षणा के भेद-गूढ व्यंग्या तथा अगूढ व्यंग्या--




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