विज्ञान | Vigyan

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Vigyan by लाला सीताराम - Lala Sitaram

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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संख्य १ ] के लिए दस्ते का सिरा। बस यही नियम केची के बनाने मे रखा जाता है । केची की बनावट में णक बात और विचार करने की है कि जिधर कैंची के फल काटने छाँटने का काम करते हैं वह कील की एक तरफ़ है ओर जहाँ पकड़ कर मनुष्य बल लगाते हैं वह कील की दूसरी तरफ । इसी नियम के लोहार धाकनी बनाने में वर्तते है । इसी श्राकनी से लाहे की चीज्ञौकोा आग में रख कर धाकते ह जिससे दम कै दम में लोहा पिघल कर লাল के समान हा जाता है तब उसे पीर पार कर तरह तरह की चीज़ बनाते हैं। इसकी साधारण बनावट का चित्र यों है-- 'कः जाकनी का परदा है जिसमें से घाकनी के फैलने पर हवा भीतर जाती है । जब घैकनी सिकुड़ती है तब क ! परदा बन्द ছা जाता है और भीतर की हवा घाकनी के मुँह अद्भुत खेल और उसका सिद्धन्त १४ खसे तीवू वेग के साथ निकल कर पास रक्खे ह्‌ कोयले और आग के खूब भड़काती ই। “বাঃ एक कुलावा है जिसमें “घर! ज़ंजीर लगी हुई है; इसीका एक सिरा 'च! डांड़ी के 'च! किनारे पर वँधा हुआ है। “च! सिरे के पास ही डाडी के 'छु? के नीचे ऊपर नीचे घूमने के लिए एक कील लगी हई है, इसी स्थान पर डोडी दीवार या खमे से लटकायी भी जाती है । ^ क ' डोंडी का दूसरा सिरा है जहाँ ज़ंजीर लगायी जाती है । आदमी इसी ज्ञजीर को पकड़ कर ऊपर नीचे डंडी को खींचता है जिससे प्रांकनी चलती हैं । इसमें भी डॉड़ी का चह अंश जहाँ बल लगाया जाता है ( ` भ › सिरा ) घुमाव से अधिक दूरी पर है ओर बह अंश जो काम करता है (चः सिस) घुमाध के बहुत पास है। भारतवर्ष के उन प्रान्तों मे (गोरखपुर, बस्ती, बिहार इत्यादि मे ) जहाँ पानी पृथ्वी तल से थोड़ा ही नीचे निकलता ड किसान कुओ का पानी ढेकली द्वारा निकालते हैं । एक मारी लकड़ी कर्षः $ पास गाड़ देते हैं ओर उसी में एक लम्बा बाँस उसी तरह लरकाते है जेसे धघाकनीवाले बांस लयकाये जाते हैं । इसी बॉस के एक सिरे पर पत्थर के टुकड़े, मिट्टी के भारी देले इत्यादि बाधते है ओर दूसरे सिरे पर मिद्धी का घड़। दूसरे किनारेबाले भारी पदार्थों का खिंचाव नीचे की ओर पाकर पानी भरा हुआ घड़ा किसान के . संकेत-मात्र बल से ऊपर को चला आता है और खर्च में किफायत हे जाती है । गाँव में धान कूटने के लिए अथवा भाड़ भांकनेवाले चिडड़ा कूटने के लिए एक तरह की ढेकी बनाते हैं. ज़िसकी बनावट इस चित्र से प्रकट हती है--




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