जयद्रथ - वध | Jayadrath Vadh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2.52 MB
कुल पष्ठ :
106
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about मैथिलीशरण गुप्त - Maithili Sharan Gupt
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रथम सगे श्५ उस एक ही झभिमन्यु से यों युद्ध जिस जिसने किया मारा गया अथवा समर से विमुख होकर ही जिया । जिस भॉति विद्यद्दाम से होती सुशोमित घन-घटा सर्वत्र छिटकाने गा बह समर में शखच्छटा ॥ तब कण द्रोणाचाय्य से साश्चय्य यो कहने ठलगा-- ाचाय देखो तो नया यह सिह सोते से जगा रघुवर-विशिख से सिन्धु-सम सब सेन्य इससे व्यस्त है यह पाथं-नन्दन पाथ से भी धीर वीर प्रशस्त है होना विमुख संग्राम से है पाप बीरो को महा यह सोच कर ही इस समय दहरा हुआ हूँ से यहाँ। _ जैसे वने अब मारना ही योग्य इसको है. यहीं सच जान छीजे झन्यथा निस्तार फिर होगा नहीं ॥ + चीराप्रणी असिसन्यु हुम हो धन्य इस संसार में हैं शन्ु भी यो सम्न जिसके शौय्यं-पारावार में । होता तुम्हारे निकट निष्प्रभ तेज शशि का सूर का करते विपक्षी भी सदा शुण-गान सच्चे शूर का ॥ तव सप्त रथियों ने वहाँ रत हो महा दुष्कर्म में-- मिल कर किया छारम्भ उसको विद्ध करना मम सें-- कप कर्ण दुःशासन सुयोधन शकुनि सुतत-युत ट्रोण भी उस एक चाठक को छगे वे सारने वह विघ सभी -
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