पाश्चात्य दर्शनों का इतिहास | Pashatya darshano ka itihas

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Pashatya darshano ka itihas by गुलाबराय - Gulabray

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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- [३1] । और दुःसाहस की सफाई में में केवल इतना ही कहना . चाहता” हूँ कि पहले की पुस्तक से इसका रंग ढंग ७“ चं बदल गया है और इसमें मेरे व्यक्तिगत विचारों का भी बहुत कुछ समावेश' हो गया है । इसके सिवा प्रारम्भिक भाग के एवं तृतीय खंड के दूसरे भाग को, जो कि बिलकुल नया जोड़ा गया है तथा छेटो, बकले, काण्ट आदि के बर्णनों को, जो कि दोबारा नए सिर से लिखे गए हैं, डोड़कर यह बतलाना कठिन है कि शेष ग्रंथ मे वतेमान लेखक का कितना भाग है और पांडेयर्ज রঃ कितना। पू्वे पुस्तक के बहुत से अंशों को काम में लाने से मेरे समय और परिश्रम की जो बचत हुईं, उसके लिये पांडेयजी की सहायता खीकार न करना मेर लिये घोर कतप्नता होगी। किन्तु उसी के साथ रूपान्तरित पुस्तक के लिये पूज्य पॉंडेयजी को उत्तरदायी 5हरा ॥ अथवा अपने साथ उत्तरदायित्व में शामिल करना उनके प्रति अन्याय होगा। पांडेय जी की पुस्तक का जो कुछ अंश मैंने इस पुस्तक में सम्मिलित किया है, उसके लिये में उत्तरदायी हूँ; किन्तु जो छुछ मैंने घटाया बढ़ाया है और जिसका प्रथक्‌ करना कठिन है, उसके लिये में पाण्डेयजी को किस प्रकार उत्तरदायी ठहराऊँ, विशेष कर जब कि दाशनिक विचारों में मेरा उन्े सत-भेद्‌ है । यद्यपि इति- हास लेखक निष्पक्त होने का यथा शक्ति प्रयत्न करते रहते हैं. ओर कभी कभी इस काय्येमें सफलता प्राप्त कर लेने फी भी डीग मारते हे, तथापि वे इख प्रकार की सफलता से बहुत दूर रते हैं। बिलकुल निष्पक्ष होकर दशन शास्त्र का इतिहास लिखना ' झुतना ही कठिन है जितना कि पक्षह्दीन पक्षी के लिये हवा सं , छड्ना ! पत्ती के लिये दो पक्ष चाहिएँ; किन्तु इतिहास-लेखक के




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