जैन धर्म क्या कहता है ? | Jain Dharam Kya Kahata Hai ?

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Jain Dharam Kya Kahata Hai ? by श्री कृष्णदत्त भट्ट - Shri Krashndatt Bhatt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१४ जन धर्म क्या कहता टै छेदग्रन्य छह है - ? निशोथ, २. महानिशीथ, ३. व्यवहार, ५ दशशतस्कध, ५ वृहत्कल्प और ६ पश्चकल्प । मूस चार हैं. १ उत्तराध्ययन, रे आवश्यक, ই दशवैकालिक और ४ पिण्डनिय्युक्ति । सतनत्र ग्रन्थ दो हैं. १ अनुयोग द्वार और २ ननदो द्वार । হাজং इन ग्रन्योको मानते है, दिगम्बर नही । उनका कहना है कि सारा प्राचीन साहित्य छु हो गया] पुराण जेन-परम्परामे ६३ शलाका-महापुरूप माने गये है। पुराणोमे इनकी कथाएँ तथा घर्मका वर्णन आदि है} प्राकृत, संस्कृत, अपश्च तथा अन्य देशी भाषाओमे पुराणोकी संख्या बहुत ই। दोनो संप्रदायके आचार्यनि सेकडो पुराणोकी रचना की है । मुख्य पुराण ये हैं: जिनसेनका आदिपुराण” और जिनसेन ( द्वि° ) का 'उरिष्रनेमि' ( हरिवंश ) पुराण, रवि- पेणका पद्मपुराण ओर गणभद्रका “उत्तरपुराण' 1 दिगम्बर साहिल्य दिगम्बर सम्प्रदायमे षट्खण्डागसको प्राचीन माना जाता हे 1 षट्‌ प्राभृत, अष्ट प्राभृत मूलाचार, त्रिवर्णाचार, समयतसार्‌ प्राभृत, प्रामृतसार, प्रवचनसार, नियमसार, पञ्चास्तिकाय, रयणसार, द्वादशानुप्रे्ना, आप्रमीमासा, रत्नकरण्डक्षावकाचार, तच्वार्थमृत्र, सर्वार्थसिद्धि आदि अनेक सिद्धान्तग्रन्थोको आदस्को दृष्िसे देखा जाता है। ह




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