प्राङ्ग मौर्य बिहार | Pranmourya Bihar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रथम অন্যান दे हैं-...विदारी, हिंदी, बंगला। ओऔरिट्रक--एशियायी भाषा की प्रतिनिधि सुंडा भाषा है तथा द्रविड भाषा की प्रतिनिधि ओरांव और माल्‍्डों है। आरतीय-आर्य, सुएडा और दविड़ भाषाओं को क्रमशः प्रतिशत ६२,७, और एक लोग बोजते हैं | अधिकांश जनता बिद्दारी बोलती है जियको तीन बोरिया সি ईं--भोजपुरी, मगदी और मैथिली। मुरडा भाषा में समस्त पद अधिक हैं। इन्दी समस्त पदर घे पूरे चास्य का भी बोध हो जाता है। इसमें प्रकृति, प्रामवास और जप्ली जीवन विपयक शब्दों का भंडार प्रचुर है ; डिग्तु भावुकता तथा म्रिश्न व्यंजनों का अभाव है । झुएठा और आये सापाएँ प्रायः एक ही चैत्र में बोज्ी जाती हैँ; तो भी उनमें बहुत भेद है। यद बात हमें इगलेए्ड थोर वेह कौ भाया पर विवार करने से चमक में श्रा षकती१ है) अँगरेजीमापा कृपाण के बल पर श्रागरे बढ़ती गई; किस्तु तब भी वेल्स को अँगरेजतीग भाषा की दृष्टि से न पराशित कर सके। यह आश्चय कौ बात है कि यथाति दोनों के बीव केवत्त एक नेतिक सौमा का भेद है; तथापि बेल्धवालों ही बोली इंग्लैंड « वालों की समझ पे परे हो जाती है। सुएडा और द्वविड भाषाओं की उत्पत्ति के बरे में विद्वानों फे विभिन्न विचार द| प्रियसेन* कहता ই ङ सम्भवतः सुगड श्रौर द्रविड भापामो का मूल एक दौ है। प्रषिद मालव रषस्तरवत्तः शए्च^दर॒ रप्यञ देः पत्‌ सें सुग्ड साप का संस्कृत से प्रणुद सम्बन्ध है। संज्ञा और किया के मुख्य शब्द, जिनका व्यावहारिक जीवन से प्रतिदिन का सम्बन्ध दै, या तो शुद्ध संस्कृत के हैं. अथवा अपभ्रश हैं। सुणडा भाषा का व्याकरण भी प्राचीन संस्कृत से बहुत मेल खाता दै। मारतवर्प की भाषाओं में से क्षेवत्ष संस्कृत और सुए्डारी में दी रुज्ञा, उवेनाम और क्रियाओं के द्विवचन का प्रयोग पाय्रा जाता है दरविड भाषा के स्वंध में नारायण शात्री४ कहते हैँ कि यद सोचना भारी भूल है कि द्रविड या द्रविड भापा--तमिज्ञ, रेलगू , मलयालम, कन्नड व तुदलू--स्वतव्र शाखा या स्वतंत्र भाषाएँ हू और इनका आये-जाति और श्यारय-मापा दे सम्बन्ध नदी द| उनसे विचार में आये तथा द्वविड भाषाओं का चोली-दामन का सम्बन्ध है। मेरे विचार में राय और शास्त्री के विचार माननीय हैं । টি १.ग्यू ददडश्चाफ इडे, মারা ২ ष्ठ ४२ धो गदाधरप्रतादु अस्पष्टद्धारा साहित्व', पटना, भाग ६ ( १) एषठ ३३ ओ उद्धत {~ ২ আজ पुल्षेकजेंडर प्रियसंद का लिग्विटिफ सर्वे भार इण्डिया, मुण्या और द्वविड भाषाएं, भाग 0२ कल्नकता, १३०६ । ३. जनेल-पिद्दार-डड़ौसा-रिसर्चे सोसाइटी, १६२६, पट ३७०६-४३ । ४, एज झाफ शंकर--टो० एस* नाराबण शास्त्री, थाग्पसन पुणढ को*) सवास १३११) ए०८९।




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