संक्षिप्त जैन इतिहास | Sankshipt Jain Itihas

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Sankshipt Jain Itihas  by मूलचंद किसनदास कपाडिया -Moolchand Kisandas Kapadiya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पावन । [३ स्तुष्यते বি, তাহ জী আনন আত কব জট দিম শীত दजाता है, इसीडिशे इसकी आवस्यक्म है। जैन बर्यफ्रा इतिहास उसके অনুষামিনীক্ষী জীধল আগা है भोदि कमं समव प्रु ह-दद कमालालोके नामय है। इस দার एष करके रे जेब इतिहासके तीग रूट ढिखे जा चुके हैं। उसके बठ्से पाटकागज लाम गये हैं कि बर्मफा परकितदम ए कये মুখ परमम कमुके লাক্স আনাস গদদইদ টা हणा षा | भमशाव कऋनमदेवफे पदङे गदां जोयममि बी । महनि माभि- सोने भौवन निर्वाईके ডিবি কষ মন্ধাক্েন পরিজ नहीं करना होता भा। इनका जीवन्‌ सतना सरण भा कि गइ प्राकुतकपमें दो मपमी जापस्चपमोंडी पूर्दि दर केठे थे উল আয कते ধু চি “কত शवो, ते दन कनगोको मरार साईं पिक अरे दे । षद मनाने मोग पोषे আত জীন মজা আর্ত थे । किस्तु बमामा इमेशा रस गई रहता | कह दिन देश गये झुब वहां ही छर्ग गा। জিন তন पुष्वप्राकी भम्मे ही बी ड़ि छे-छसके लक्कारी एस गाषाक्ये ही तेते । উপ प्लाक्ा बताते हैं कि जब पक रोज कछ- কষ লগ হী कक, क्पेगोक्रो पेरफा सभारू हक करमेके डिने बुद्धि घेर बडका ढरबोय करमा পাবহনন্ক होगमा पल ने जामते शो वे ही मही कि उसका বাদীন ইউ ক? ঈ জন নানী তর দাস खोजने कये কলসি इन्धे हव्य শা सतु গা । एव कुककरोंगे, लो कुक चौदद थे, कोमोको अपभगिर्षाद




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