भाषाशास्त्र तथा हिन्दी भाषा की रूपरेखा | Bhashashastra Tatha Hindi Bhasha Ki Rooprekha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
19 MB
कुल पष्ठ :
359
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भाषादयार सिव 9
सै इम जिसे भाषा का प्रयोग करते आ रहे हैं यदि उतके सम्बन्ध में कोई साम्रान्य-सा
সন ধু देता है कि-- तुम आमंरा से आ रहे हो! यह वाक्य दीक है अथवा तुम
आगरे से आ रहे हो' इन दोनों में से झुद्ध क्या है तो उत्तर देना कठिन हो जाता है।
सी प्रकार घे जिन ध्वनियों से इम सर्वथा परिचित हैं ओर जिनका शत दिन प्रयोग करते'
हैं उनके सम्बध में कोई पूछ बैठे कि 'दश” और “दस! में से क्या लिंखना चाहिए तो
हम असमंजस में पड़ जाते हैं। प्वनियों ओर हब्द-रूपों की मोति भाषा की अभिव्यक्ति-
पंडति की जानकारी के लिए भी भाषाशास्त्र का अध्ययन करना नितान्त आवश्यक हैं।
मानव के सम्पूर्ण जीवन उसकी वाग्प्वनियों में लिपठा रहता है ओर उनका अध्ययन
करना ही माषाशास्त्र का मुख्य कार्य है। सक्षेप में, भाषा-आस्त्र की उपयोगिता निम्न
लिखित है --
(१) भाषा के आन्तरिक तथा बाह्य रूप की वास्तविक जानकारीके किए इसकी
उपयोगिता स्पष्ट रूप से परिल्क्षित होती है। भाषा के सम्बन्ध में सभी प्रकार की
जिज्ञासाओं का समाधान भाषाशास्तर से होता है ।
(२) किसी भी भाषा के सम्यक् शिक्षण के लिए भाषाशासत्र एक निर्देशक के समान है,
जिसकी सद्दायता से हम किसी भी प्रकार की भाषा की शिक्षा ठीक उच्चार्य के
साथ सम्यक् रूप में प्राप्त कर सकते हैं ।
(३) जीवित बोली तथा भाषा एव लिखित अथवा साहित्यिक भाषा के बीच का अन्तर
भाषाशास्त्र के अध्ययन से बिदित होता है। साधारण और शिष्ट छोग़ों के बीच जो
अन्तर दिखलल्पई पडता है वही मापा के क्षेत्र में भी लक्षित होता है ।
(४) हस्तलिसित अन्थ के पाठ-सशोधन मे तथा अर्थं निर्णय मे माषा विशन ओर
भाषाशास्त्र दोनो ही उपयोगी है । भाषाशास्त्र के नियमों को ध्यान में रख कर
जो पाठ शोध किया जाता है वह सम्यक् तथा वैशनिक माना जाता है |
(५) ऐतिहासिक भाषाशास्त्र मे भाषा के विकास के साथ ही ऐतिहासिक खोजों का
विवरण भी मिलता है, जिससे पुराकाल्कि समाज तथा सस्कृति के सम्बध में कई
शातव्य तथ्यों की जानकारी मिलती है। मानव के विकास की कथा के स्पष्ट सूत्र
भाषा मे निहित रहते हैं । इसलिए कई शतान्दियों के बाद भी वे उस युग के
परिचायक होते दै ।
घामान्यत कोग भाषाशास्त्र को व्याकरण की भांति दुरूह तथा नीरस समझते हैं ।
बहुत कु अशो मे यहं बात सच भी है। किन्तु ज्ञानाज॑न में दुरूहता और जटिलता
का प्रन नी होता । मखे ही यह सामान्य सचि का विषय न हो, किन्तु भाषा की ठीक
ठीक जानकारी के लिए यह उविकर विषय अध्य है । भाषां के सम्बन्ध में हमारी
अज्ञानता ओर भ्रम का परिहार इस शास्त्र के अध्ययन से ম্ভীমাঁরি हो जाता है |
व्याकरण की अपेक्षा हस शास्त्र का विषय अधिक रोचक तथा विवरणात्मक है | इस
लिए. यह उतना कठिन नहीं है। एक साहित्य के विद्यार्थी के लिए किसी काव्य की
सभ्यक् व्याख्या ओर आलोचना एवं साहित्यशास्त्र समशने में जितना बोद्धिक श्रम
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