सेवा के मंत्र | Seva Ke Mantra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१९ |] सेघाके सन्त्र करता है, आखिर उसीको अधिक सेवाकी आवश्यकता होती है |, कोई प्रेमवश तुम्हारी सेवा करना चाहे तो उसे मना करते समय इतना अवश्य ध्यानमें रखना किं प्रेमपूवेक मदद्‌ करनेसे जितनी सेवा होती है, उतनी हयी सेवा प्रेमपू्वक मदद खीकार करनेसे भी होती हे ।” अपने वसमर बुद्धिमानी और सचाईके साथ सेवा कर चुकनेपर उसके परिणामकी चिन्ता कमी न करना; क्योंकि सेवाकी निमेठता सेवककों शान्तिको रूपमे वापस मिलती है ओर जिसकी सेवा की गयी है वह सुखपूण वातावरणमे रहने र्गता है । | (सेवाका सर्वोत्तम बदला, हृदयको अधिक प्रेममय बनानेकी शक्ति और उसके द्वारा अधिकाधिक सेवा करनेकी शक्तिमें ही है ।!




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