अमेरिकी इतिहास की रूपरेखा | Ameriki Itihas Ki Rooprekh

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Ameriki Itihas Ki Rooprekh by जॉन स्मिथ - John Smith

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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औपनिवेशिक युग कछ फसलें उगाने के बाद तम्बाकू की खेती से खेत कमजोर हो जाते थे। इसलिए नयी भूमि ভুত किसान शी ध्र विभिन्न जलमार्गो के किनारे फैल गये । इस क्षेत्र मे नगर नहीं थे और राजघानी जेम्सटाउन में भी थोड़े ही मकान थे । वर्जिनिया में अधिकतर उपनिवेशी अपनी आशिक दशा सुधारने के लिए आये थे, परन्तु मेरीलैण्ड के पड़ोसी उपनिवेश में बसने वालों का उद्देश्य आथिक और धामिक दोनों था। कैथलिकों के लिए आश्रय दृंढने के साथ-साथ कैलवर्द-परिवार एेसी म्‌-सम्पत्ति भी विकसित करना चाहता था जो लाभकारी सिद्ध हो। इस उदेश्य की पूति के लिए तथा ब्रिटिश सरकार से झगड़ा बचाने के लिए कैलवर्टों ने कैथलिक और प्रोटेस्टेंट दोनों प्रकार के आग्रवासियो को प्रोत्साहित किया । कौलवर्टो ने इस वात का प्रयत्न किया कि मेरीलैण्ड का शासन और उसकी सामाजिक व्यचस्था प्राचीन परम्परा के अनुसार अभिजात-तन्त्रीय हो। वे राजा के सभी विशेषाधिकारों को अपने हाथ में लेकर वहाँ का शासन करना चाहते थे, परन्तु पश्चिमी सीमा पर बसे हुए इस समाज में स्वतन्त्रता की भावना प्रवल थी। अन्य उपनिवेशों की भांति मेरोलैण्ड में मी अधिकारी वर्ग उपनिवेशियों की इस हठपूर्ण मांग की उपेक्षा नहीं कर सका कि उन्हे अंग्रेजी सामान्य विधि (कॉमन लॉ) द्वारा स्थापित वैयक्तिक स्वतन्त्रता का तथा प्रतिनिधि सभाओं के माध्यम से शासन में प्रजाजनों के भाग लेने के प्राकृतिक अधिकार के उपभोग का आश्वासन हो । मेरीलैण्ड की अर्थ-व्यवस्था बहुत कुछ वर्जिनिया की अर्थ-व्यवस्था की भांति विकसित हुई। कृषि-प्रधान होने तथा बड़े-बड़े तटवर्ती बागान-मालिकों के प्रभुत्व के साथ-साथ इन दोनों उपनिवेशों में भीतर की ओर भूमि थी, जिसमे भूमिधर किसान निरन्तर वस्ते जा रहे थे। दोनों उपनिवेश वर्ष में एक पैदावार की प्रथा की असुविधा का सामना कर रहे थे। १८वीं शताब्दी के मध्य में पहुंचने से पूर्व ही दोनों नीग्रो दासता से भली भांति प्रभावित हो चुके थे । उन दोनों उपनिवेशों में सम्पन्न बागान-मालिकों ने अपने सामाजिक उत्तरदायित्व का गम्मीरतापूर्वक निर्वाह किया और पुर-शासक (जस्टिस आव द पीस), नागरिक सेना के कर्नल, तथा विधाने-समा के सदस्य के पद पर कार्य करते रहे । परन्तु भूमिधर किसान भी सार्वजनिक समाओं में वैठते ये ओौर राजनीतिकं पदों पर पटुच जाते थे। उनकी स्पष्टवादी स्वतन्त्र वृत्ति वागान-मालिकों के अभिजात-वर्ग को सत्तत चेतावनी थी कि वे स्वतन्त्र नागरिकों के अधिकारों का अधिक अतिक्रमण न करें । १७वीं शताब्दी के अन्त और १८वीं शताब्दी के आरम्म तक मेरीलैण्ड और वजिनिया की सामाजिक व्यवस्था में वे विशेषताएं आ चुकी थीं जो गृहयुद्ध तक बनी रहीं। दासों के परिश्रम के आधार पर बागान-मालिकों के पास अधिकांश राजनीतिक अधिकार तथा अच्छी भूमि आ चुकी थी। उन्होंने आलीश्ञान कोठियां खड़ी कीं, रईसी का जीवन बिताने लगे और समुद्र-पार के सांस्कृतिक जीवन से मी सम्पर्क में रहे | सामाजिक और आध्िक सोपान के द्वितीय वर्म में वे किसान थे जिनकी समुद्धि की आशा भीतर की उर्वर सूमि पर टिकी थी। सबसे कम समुद्ध छोटे किसान थे, जिन्हें अपने अस्तित्व ११




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