प्रबंध - पद्म | Prabandh-padma

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Prabandh-padma by श्री सूर्यकान्त त्रिपाठी - Shri Suryakant Tripathi 'Nirala'

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रबंध-पद्म जनता को तरह तरह की झहितकर अनुकूल सीख न देकर कुछ परिश्रम करने के लिये ही कहना ठीक होगा । जिनको संघधि-समास का भी ज्ञान नही ऊ चे साहित्य की सृष्टि उनके लिये नहीं न हि 0708 पा. 006 8118 0167 असमस्त शब्दों की किताबे लिखने से राष्ट्र- भाषा का उद्धार हुआ जाता है । जो लोग समय को देखते हुए अपनी पुस्तकों या पद्नो के प्रचार के लिये उनमें साधारण मापा और सरल भावों के रखने का प्रयत्न करते हैं वे ऐसा व्यवसाय की दृष्टि से करते हैं। यह दिंदी का दित न हुआर्थ हित तो गददन शिक्षा द्वारा ही होगा | हिंदू-मुस्लिम ऐक्य के लिये ललित शब्दावली की टॉग तोड़कर लैंगड़ी कर देने से लड्खड़ाती हुई भाषा अपनी प्रगति में पीछे ही रहेगी । हमारा यह श्रमिप्राय भी नहीं कि भाषा मुश्किल लिखी जाय नद्दी उसका प्रवाह भावों के झ्रनुकूल ही रहना चाहिए | व्ाय निकली हुई तर सढी हुई भाषा छिपती नहीं । भावानुसारिणी कुछ मुश्किल होने पर भी भाषा समभ मे श्रा जाती है। उसके लिये कोष देखने की जरूरत नह्दी होती । जिंस तरदद हिंदी के लिये कहा जाता है कि बह झधिकसंख्यक लोगों की भाषा है उसी तरह यदि श्रधिक संख्या उसकी योग्यता को भी मिलेगी तो योग्यतम की विजय मैं फिर कोई असंभाव्यता न रह जायगी । इसके लिये भी भाषा-साहिंत्य में ्धिकाधिक प्रसार की ्ावश्यकता है | जो लोग साधारण माषा के प्र मी हैं उनके लिये साधारण पुस्तकें रहेंगी ही । पहली दूसरी और चौथी पुस्तकों की तरह भाषा-साहित्य का भी स्तर तैयार रहेगा | प्रायः यदद शिकायत होती है कि छायावादी कविताएँ समभ में नही झ्ाती उनके लिखनेवाले भी नदी रूमभते न समझा पाते हैं । इस तरह के श्राक्तेप दिदी के उतरदायी लेखक तथा संपादकगण किया करते हैं| कमजोरी यही पर है। दिंदी में बहुत-से लोग ऐसे मी हैं जो छायावादी




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