युग की महान चुनौती | Yug Ki Mahan Chunauti

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Yug Ki Mahan Chunauti by जयप्रकाश नारायण - Jai Prakash Narayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२ ===? ५ क्रय-शक्ति की कमी की समस्या देश में एक तीसरी समस्या भी विक्ट रूप धारण कर रही दे! वह है, जनता की क्रय-शक्ति का अभाव । अखबारों में देखने की मिलेगा कि कारखानो का माल जसा हो रहा है और फारखानेद'र विदेशों में माल भजने कं लिए सहलियत माँग रहे ६ । लेकिन साथ-द्वी-साथ देश के असंख्य नर-नारी उपभोग की वस्तुओं के बिना परेशान है। अर्थशात्र के परिडतों से पूछने पर वे कहते है कि देश में क्रय-शार का श्रमाच दौ गया है । उनके पास इतनी सम्पत्ति नही रह गयी है, जिससे थे माल खरीद सके | इसका मतलब यह डे कि देशभर में फेली करोडों दी श्रावादी सपृण खूप से संपत्तिदीन दो गयी है) दश मे यरीवी क्वो! अर्थशास्त्र फे पंडितों का कहना है कि जबतक मुल्क की जनना म स्वरादन की ताकत नदी पेदा दोनी, तव्रतक्र देश श्राय नही चद्‌ सक्ता। सवाल ছ कि आखिर यह दरिद्रता क्यो ? एक जम्तनना था कि देश में सपत्ति भरएर थी, देशभर लोगो के पास तरह-तरह की सपत्ति माजूद थी, लेडिन दो জট অথ फे विदेशी घोपण के कारण बह सृस गयी। छिछला तालाव बीच में थोड़ा गहरा ओर चारो ओर मित से उभरा ্সো টানা ই वर्षा ऋतु म॑ जब तालाब भर जाता हू, तो ऊपर से समतल पिनां देता है। नीचो ओर ऊँची. सभी जगहों में पानी भरा रहता डे लेकिन देसाख ओर जेठ में जब तालाव सूप जाता टै. तो बीच से थोड़ा पानी रह जाता ६ आर चारों शोर का पाना ससफर नाचे का जमोन फट जाता है;




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